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२२ श्री नेमिनाथ-चरित
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उन्होंने मुझको ग्रहण नहीं किया है, परन्तु मैंने उनके चरणोंमें अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया है । देवता भेट स्वीकार करें या न करें। भक्तका काम तो सिर्फ भेट अर्पण करना है। अर्पण की हुई वस्तु क्या वापिस ली जा सकती है ? नहीं बहिन ! नहीं ! उन्होंने जिस संसारको छोड़ना स्थिर किया है मैं भी उस संसारमें नहीं रहूँगी। उन्होंने आज मेरा कर ग्रहण करनेसे मुख मोड़ा है; परन्तु मेरे मस्तकपर वासक्षेप डालनेके लिए उनका हाथ जरूर बढ़ेगा । अब न रोऊँगी । उनका ध्यान कर अपने जीवनको धन्य बनाऊँगी।"
राजीमतीने हीरोंका हार तोड़ दिया, मस्तकका मुकुट उतार कर फैंक दिया, जेवर निकाल निकालकर डाल दिये, सुंदर वस्त्रोंके स्थानमें एक सफेद साड़ी पहन ली और फिर वह नेमिनाथके ध्यानमें लीन हो गई।
वार्षिक दान देना समाप्त हुआ । नेमिनाथजीने सहसाम्र वनमें जाकर सावन सुदि ६ के दिन चित्रा नक्षत्र में दीक्षा ली। इन्द्रादि देवोंने आकर दीक्षाकल्याणक किया। उनके साथ ही एक हजार राजाओंने भी दीक्षा ली । दूसरे दिन प्रभुने वरदत्त ब्राह्मणके घर क्षीरसे पारणा किया।
नेमिनाथजीके छोटे भाई रथनेमिने एक बार राजीमतीको देखा । वह उसपर आसक्त हो गया और उसको वशमें करनेके लिए उसके पास अनेक तरहकी भेटें भेजने लगा । राजीमती यद्यपि किन्हीं भेटोंका उपभोग नहीं करती थी तथापि उन्हें यह सोचकर रख लेती थी कि ये मेरे प्राणेश्वरके अनुजकी
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