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२२ श्री नेमिनाथ-चरित
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बोले:-" भाई ! तुम्हारी कैसी दया है ? पशुओंकी आर्त वाणी सुनकर तुमने उन्हें सुखी करनेके लिए उनको मुक्त कर दिया; मगर तुम्हारे मातापिता और स्वजनसंबंधी रो रहे हैं तो भी उनका दुःख मिटानेकी बात तुम्हें नहीं सूझती । यह दया है या दयाका उपहास ? पशुओंपर दया करना और मातापिताको रुलाना, यह दयाका सिद्धांत तुमने कहाँसे सीखा ? चलो शादी करो और सबको सुख पहुँचाओ।"
नेमिनाथ बोले:-"पशु चिल्लाते थे, किसीको बंधनमें डाले बिना अपने प्राणों की रक्षा करनेके लिए और मातापिता रो रहे हैं, मुझे संसारके बंधनोंमें बाँधनेके लिए । हजारों जन्म बीत गये । कई बार शादी की, मातापिताको सुख पहुँचाया, स्त्रजन संबंधियोंको खुश किया; परंतु सबका परिणाम क्या हुआ ? मेरे लिए संसार भ्रमण । जैसे जैसे मैं भोगकी लालसामें फँसता गया, वैसे ही वैसे मेरे बंधन दृढ होते गये ।
और माता पिता ? वे अपने कर्मोंका फल आप ही भोगेंगे। पुत्रोंको ब्याहने पर भी मातापिता दुखी होते हैं, बली और जवान पुत्रोंके रहते हुए भी मातापिता रोगी बनते है, एवं मौतका शिकार हो जाते हैं। प्राणियोंको संसारके पदार्थों में न कभी सुख मिला है और न भविष्यमें कभी मिलेहीगा । अगर पुत्रको देखकर ही सुख होता हो तो मेरे दूसरे भाई हैं। उन्हें देखकर और उनको ब्याहकर वे सुखी हो । बंधु ! मुझे क्षमा करो। मैं दुनियाके चक्करसे बिल्कुल बेजार हो गया हूँ। अब मैं हरगिज इस चक्करमें न
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