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२२ श्री नेमिनाथ-चरित २३७ राजा हरिनंदीने अपराजितको राज्य देकर दीक्षा ली और तप करके वे मोक्ष गये।
एक बार अपराजित राजा फिरते हुए एक बगीचेके अंदर जा पहुँचा । वह बगीचा समुद्रपाल नामक सेठका था । सुखसामग्रियोंकी उसमें कोई कमी न थी। सेठका लड़का अनंगदेव वहाँ क्रीडामें निमग्न था । राजाके आनेकी बात जानकर उसने उनका स्वागत किया। राजाको यह जानकर परम संतोष हुआ कि मेरे राजमें ऐसे सुखी और समृद्ध पुरुष हैं । दूसरे दिन राजा जब फिरने निकला तब उसने देखा कि लोग एक मुर्देको लेजा रहे हैं । वह अनंगपालका मुर्दा था। राजाको बड़ा खेद हुआ । जीवनकी अस्थिरताने उसको संसारसे विरक्त कर दिया। कल शामको जो परम स्वस्थ और सुखमें निमग्न था आज शामको उसका मुर्दा जा रहा है । यह भी कोई जीवन है ?
राजाने प्रीतिमतीसे जन्मे हुए पद्मनाभके पुत्रको राज्य देकर दीक्षा ली। उसके साथ ही उसके भाइयोंने और पत्नी प्रीतिमतीने भी दीक्षा ले ली। ६ छठा भव___वे सभी तपकर कालधर्मको प्राप्त हुए और आरण
नामके ग्यारहवें देवलोकमें इन्द्रके सामानिक देव हुए। भरत क्षेत्रके हस्तिनापुरमें श्रीषेण नामका राजा था। उसकी
__ श्रीमती नामकी रानी थी। इसके गर्भसे अपरा ७ सातवाँ भव-जितका जीव चयकर उत्पन्न हुआ । उसका नाम (शंख राजा) शंख रखा गया। बड़ा होनेपर वह बड़ा विद्वान
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