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२२ श्री नेमिनाथ-चरित
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विद्याधरको देखा और ललकारा । विद्याधरके साथ शंखका युद्ध हुआ । अन्तमें विद्याधर हार गया और उसने यशोमती शंखको सौंप दी । शंखके समान पराक्रमी वीरको कई विद्याधरोंने भी अपनी कन्याएँ अर्पण की । शंख सबको लेकर हस्तिनापुर गया । मातापिताको अपने पुत्रके पराक्रमसे बहुत आनंद हुआ।
शंखके पूर्व जन्मके बंधु मूर और सोम भी आरण देवलोकसे चयकर श्रीषेणके घर यशोधर और गुणधर नामके पुत्र हुए। - राजा श्रीषेणने पुत्रको राज्य देकर दीक्षा ली । जब उन्हें केवलज्ञान हुआ तब राजा शंख अपने अनुजों और पत्नी सहित देशना सुनने गया । देशनाके अंतमें शंखने पूछा:" भगवन् यशोमतीपर इतना अधिक स्नेह मुझे क्यों हुआ ?"
केवलीने कहा:-" जब तू धनकुमार था तब यह तेरी धनवती पत्नी थी । सौधर्म देवलोकमें यह तेरा मित्र हुआ। चित्रगतिके भवमें यह तेरी रत्नवती नामकी प्रिया थी माहेंद्र देवलोकमें यह तेरा मित्र थी। अपराजितके भवमें यह तेरी प्रीतिमती नामकी प्रियतमा थी। आरण देवलोकमें तेरा मित्र थी। इस भवमें यह तेरी यशोमती नामकी पत्नी हुई है। इस तरह सात भवोंसे तुम्हारा संबंध चला आ रहा है। यही कारण है कि तुम्हारा आपसमें बहुत प्रेम है । भविष्यमें तुम दोनों अपराजित नामके अनुत्तर विमानमें जाओगे और वहाँसे चयकर इसी भरतखंडमें नेमिनाथ नामके चौवीसवें तीर्थकर होगे और
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