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जैन-रत्न wwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm~~
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यह राजीमती नामकी स्त्री होगी। तुमसे ही ब्याह करना स्थिरकर यह कुमारी ही तुमसे दीक्षा लेगी और मोक्षमें जायगी।" __ शंखको वैराग्य हुआ और उसने दीक्षा ले ली । उसके अनुजोंने, मित्रोंने और पत्नीने भी दीक्षा ली। बीस स्थानका आराधन कर उसने तीर्थकर गोत्र बाँधा ।
_अंतमें पादोपगमन अनशन कर शंख मुनि सबके(आठवाँ भव
साथ अपराजित नामके चौथे अनुत्तर विमानमें उत्पन्न हुए। भरत खंडके सौरिपुर नगरमें समुद्रविजय नामके राजा थे।
उनकी पत्नीका नाम शिवादेवी था। शिवा९ नवाँ भव । देवीको चौदह महा स्वम आये और शंखका ( अरिष्ट नेमि ) जीव अपराजित विमानसे चयकर कार्तिक वदि १२ के दिन चित्र नक्षत्रमें शिवादेवीकी कोखमें आया। इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक मनाया। क्रमसे नौ महीने और
आठ दिन पूरे होने पर श्रावण सुदि ५ के दिन चित्र नक्षत्र में शिवादेवीने पुत्ररत्नको जन्म दिया । इन्द्रादि देवोंने जन्म कल्याणक मनाया। उनका लक्षण शंखका और वर्ण श्याम था । स्पममें माताने अरिष्ट रत्नमयी चक्रधारा देखी थी इसलिए उनका नाम अरिष्टनेमि रक्खा। ___ समुद्रविजयके एक भाई वसुदेव थे। उनके श्रीकृष्ण और बलदेव नामके दो पुत्र थे। श्रीकृष्णकी वीरता तो जगप्रसीद्ध है । वे १-श्रीकृष्णका पूरा हाल जाननेके लिए आगे दिये हुए वसुदेव चरित्रको देखो।
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