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२२ श्री नेमिनाथ-चरित
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अपराजितको चारों तरफ से घेर लिया । अपराजित भी घोड़ेपर सवार होकर अपना रणकौशल बताने लगा । अपराजितने खांडा और भाला चलाते हुए अनेकोंको धराशायी किया । कौशलपति एक हाथीपर बैठा हुआ था । अपराजितने हाथीपर भाला चलाया । महावत मारा गया। हाथी घूम गया । दूसरा हाथी सामने आया । अपराजित छलांग मारकर उस हाथीपर जा चढ़ा और उसके सवार व महाबत दोनोंको मार डाला । राजा शाबाश ! शाबाश !' पुकार उठा । वीर हमेशा वीरोंकी प्रशंसा करते हैं । चाहे वह शत्रु ही क्यों न हो ।
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कौशलपतिको उसके मंत्रीने कहा :- " महाराज ! यह वीर तो अपने मित्र हरिनंदीका पुत्र है । अजानमें हम युद्ध कर रहे हैं । युद्ध रोकिए । "
राजाने युद्ध रोक दिया और कुमारको अपने पास बुलाया । स्नेहके साथ उसके सिरपर हाथ फेरा और कहा: - " तुम्हारी वीरता देखकर मैं बड़ा खुश हूँ । यह जानकर तो मुझे अधिक खुशी हुई है कि तुम मेरे मित्र हरिनंदीके पुत्र हो ।" उसे और विमलबोधको लेकर वह शहर में गया । राजाने डाकूको माफ कर दिया । और अपराजितके साथ अपनी कन्या कनकमालाका ब्याह कर दिया | अपने मित्र हरिनंदी को भी इसकी सूचना कर दी और यह भी कहला दिया कि अपराजित थोड़े दिन कौशलमें ही रहेगा ।
एक दिन रातमें अपराजित अपने मित्र विमलबोधको लेकर
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