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जैन-रत्न
अन्तमें मेघनादमुनिभी कालान्तरमें, अनशन करके मृत्युको प्राप्त हुए और अच्युत देवलोकमें इन्द्रके सामानिक देव हुए। जबूंद्वीपके पूर्व विदेहमें सीता नदीके दक्षिण तीरपर मंगला
वती नामका प्रांत है। उसमें रत्न संचया नामकी आठवाँ भव नगरी थी । वहाँ क्षेमंकर नामका राजा राज्य ( वज्रायुद्ध- करता था। उसके रत्नमाला नामकी रानी थी। चक्रवर्ती) अपराजितका जीव अच्युत लोकसे च्यवकर
उसकी कोख से पुत्ररूपमें जन्मा । उसका नाम वज्रायुध रखा गया । बड़े होनेपर लक्ष्मीवती नामकी राजकन्यासे उसका ब्याह हुआ । अनंतवीर्यका जीव अच्युतदेवलोकसे चयकर लक्ष्मीदेवीकी कोखसे जन्मा । सहस्रायुद्ध उसका नाम रखा गया । जवान होनेपर उसका ब्याह कनकश्रीसे हुआ। उससे शतबल नामका एक पुत्र पैदा हुआ। ___ एक बार राजा क्षेमंकर अपने पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, मंत्री
और सामंतोंके साथ सभामें बैठा हुआ था । उस समय ईशान कल्पके देवता भी चर्चा कर रहे थे। दौराने चर्चा में एक देवताने कहा कि, पृथ्वीपर वज्रायुद्धके समान कोई सम्यक्त्वी और ज्ञानवान नहीं है । यह बात चित्रचूल' नामक देवताको न रुची । वह बोला,-"मैं जाकर उसकी परीक्षा करूँगा।"
वह, मिथ्यात्वी देवता, राजा क्षेमंकरकी राजसभामें आया और बोला:--" इस जगतमें पुण्य, पाप, जीव और परलोक कुछ नहीं हैं। प्राणी आस्तिकताकी बुद्धिसे व्यर्थ ही कष्ट पाते हैं।"
यह सुनकर वज्रायुद्ध बोले:-" हे महानुभाव ! आप
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