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जैन - रत्न
धनने राणिके स्वनका फल पूछा । मुनिने उत्तर दिया:- " नौ
भव कर तुम्हारा पुत्र मोक्षमें जायगा ।"
वसंत ऋतु धनकुमार धनवतीके साथ एक सरोवरपर गया । वहाँ उन्होंने एक स्थानपर एक मुनिराजको अचेत पड़े देखा | अनेक शीतोपचार कर उन्होंने उनकी मूर्च्छा दूर की। मुनि सचेत होने पर राजकुमारने प्रणाम कर उनके अचेत होनेका कारण पूछा । मुनिने सुमधुर स्वर में कहा :- " हे राजन् ! मैं अपने गुरु के साथ विहार कर रहा था, इस जंगलमें रस्ता भूल गया । भटकते हुए । भूख प्यास और थकानसे मुझे मूर्च्छा आ गई । " फिर मुनिराजने श्रावकधर्मका उपदेश दिया । जिससे धनकुमारने सम्यक्त्व सहित श्रावकधर्म स्वीकार कर लिया । राजकुमार महलोंमें गया और मुनि अन्यत्र विहार कर गये ।
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राजकुमारने चिरकाल तक संसारका सुख भोग, जयन्त पुत्रको राज्य सौंप, वसुंधर नामक मुनिके पाससे दीक्षा ली और चिरकाल तक मुनित्रत पाला ।
२ दूसरा भव
अनशन सहित प्राण तजकर धनकुमारका जीव सौधर्म देवलोक में देव हुआ ।
धनकुमारका जीव वहाँसे च्यवकर वैताढ्य पर्वतकी उत्तर श्रेणी में सुरतेज नामक नगरके खेचर ३ तीसरा भव— राजा श्रीसूरकी रानी विद्युन्यमतिके गभसे जन्मा । उसका नाम चित्रगति रखा गया । धनवतीका जीव उसी पर्वतकी दक्षिण श्रेणीमें शिवमंदिर नगर
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