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जैन-स्नि
अनशन धारणकर वैशाख वदि १० के दिन अश्विनी नक्षत्र में मोक्ष गये । इन्द्रादि देवाने निर्वाणकल्यणक मनाया । इनकी आयु कुल १० हजार वर्षकी थी और शरीर-ऊँचाई १५धनुष थी।
मुनिसुव्रत स्वामीके निर्वाण जामेके छ: लाख वर्ष बाद नमिमाथजी मोक्षमें गये।
इनके समयमें हरिषेण और जय नामक चक्रवर्ती हुए हैं।
२२ श्री नेमिनाथ-चरित
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जंबद्वीपके भरत क्षेत्रमें अचलपुर नामक नगर था। उसका
राजा विक्रमधन था। उसके घरणी नामकी १ प्रथम भव-- रानी थी। रानीने एक रात्रिमें स्वम देखा कि
एक पुरुषने फलोवाले आम्र वृक्षको हाथमें लेकर कहा कि, यह वृक्ष तुम्हारे आंगनमें रोषा जाता है । जैसे २ समय बीतेगा वैसे ही वैसे वह अधिक फलवाला होगा और भिन्न २ स्थानोंपर नौ जगह रुपेगा। सवेरे शय्या छोड़कर रानी उठी और नित्य कृत्योंसे निवृत्त हो उसने स्वमका फल राजासे पूछा । राजाने शीघ्र ही स्वमनिमित्तिकको बुलाकर स्वमका फल कहनेकी आज्ञा दी। उसमे कहा:-" हे राजन् तुम्हारे अधिक गुणवान पुत्र होगा । और नौ बार एक्ष रुपेगा इसका फल केवली गम्य है।"
यह सुनकर राजा और रामी हर्षित हुए । समयके पूर्ण
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