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जैन - रत्न
तरह ३० हजार वर्षकी आयु पूर्ण की। उनके शरीरकी ऊँचाई - २० धनुष थी ।
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मल्लिनाथजीके निर्वाण जानेके बाद चौवन लाख बर्ष बीतने पर मुनिसुव्रत स्वामी मोक्षमें गये ।
मुनिसुव्रत स्वामीके समय में महापद्म नामका चक्रवर्ती हो गया है ।
२१ श्री नमिनाथ - चरित
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जंबूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में कौशांबी नामकी नगरी थी । उसमें सिद्धार्थ राजा राज्य करता था । किसी १ प्रथम भव — कारण से उसको संसारसे वैराग्य हुआ और उसने सुदर्शन मुनिके पाससे दीक्षा ली एवं बीस स्थानककी आराधना से तीर्थकर गोत्र बाँधा ।
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अन्तमें शुभध्यान पूर्वक मरकर वह अपराजित देवलोक गया ।
२ दूसरा भव
३ तीसरा भव—
वहाँसे च्यवकर सिद्धार्थका जीव मिथिला नगरीके राजा विजयकी रानी वाके गर्भमें, आश्विन सुदि १५ के दिन अश्विनी नक्षत्र में, आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक मनाया ।
गर्भका समय पूरा होनेपर वमा देवीने, श्रावण वदि ८ के दिन अश्विनी नक्षत्रमें नील कमल लक्षणयुक्त, स्वर्णवर्णी पुत्र
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