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१६ श्री शांतिनाथ-चरित ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
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दीक्षा ली। इस तरह बलभद्र चिरकाल तक तप करते रहे। अन्तमें अनशन कर मृत्युको प्राप्त हुए और अच्युत देवलोकमें इन्द्र हुए। ___ इधर अनंतवीर्यका जीव भी नरक भूमिमें दुष्कर्मोंके फलभोग स्वर्णके समान शुद्ध हो गया। फिर वह नरकसे निकल कर, वैताब्य पर्वतपर गगनवल्लभ नगरके स्वामी मेघवाहनकी मेघमालिनी पत्नीके गर्भसे उत्पन्न हुआ । उसका नाम मेघनाद रक्खा गया। जब वह यौवनको प्राप्त हुआ तब मेघवाहनने उसको राज्य देकर दीक्षा ले ली।
राज्य करते हुए एक बार मेघनाद प्रज्ञप्ति विद्या साधनेके लिए मंदर गिरिपर गया। वहाँ नंदन वनमें स्थित सिद्ध पत्तनमें शाश्वत प्रतिमाकी पूजा करने लगा। उस समय वहाँ कल्पवासी देवताओंका आगमन हुआ। अच्युतेन्द्रने अपने पूर्व भवके भाईको देखकर, भ्रातृस्नेहसे, कहा:-"भाई ! इस संसारका त्याग करो।" ___ उस समय वहाँ अमर गुरु नामक एक मुनि आये हुए थे। मेघनादने उनसे चरित्र अंगीकार किया। ___ एक समय मेघनाद मुनि नन्दन गिरि गये । रातमें ध्यानस्थ बैठे हुए थे, उस समय प्रति वासुदेवका पुत्र-जो उस समय दैत्य योनिमें था-वहाँ आ पहुँचा । अपने पूर्वजन्मके वैरीको देखकर दैत्यको क्रोध हो आया। वह मुनिको उपसर्ग करने लगा। परन्तु मेघनाद मुनि तो पर्वतके समान स्थिर रहे । मुनिको शांत देखकर वह बड़ा लज्जित हुआ और वहाँसे चला गया।
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