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जैन-रत्न wwmmmmmmm स्वमोंसे आपके यहाँ एक ऐसा पुत्र पैदा होगा जो चक्रवर्ती भी होगा और तीर्थकर भी।" ___ इन्द्रादिदेवोंके आसन काँपे और उन्होंने आकर प्रभुका गर्भकल्याणक किया। ___ नौ मास पूरे होनेपर ज्येष्ठ मासकी वदि तेरसके दिन भरणी नक्षत्रमें अचिरादेवीके गर्भसे, स्वर्ण जैसी कान्तिवाले एक सुन्दर कुमारका जन्म हुआ । उसके जन्मसे नारकी जीवोंको भी क्षणभरके लिए सुख हुआ । इन्द्रादि देवोंने आकर प्रभुका जन्म कल्याणक किया । अचिरादेवीकी निद्रा भंग हुई। सब तरफ आनंदकी बधाइयाँ बँटने लगी। घर २ में मंगलाचार होने लगे। भगवानका नाम शांतिनाथ रखा गया । धीरे २ दूजके चन्द्रमाके समान कुमार बढ़ने लगे। शैशवकालकी मनोहर कृतियों द्वारा कुमार अपने मातापिताको आनन्द देने लगे । जब भगवान शान्तिनाथ युवावस्थाको प्राप्त हुए तब विश्वसेनने भगवान शांतिनाथका अनेकों राजकन्याओंके साथ विवाह कर दिया। फिर विश्वसेनने कुमार शान्तिनाथको राज्य देकर अपना जीवन सार्थक बनानेके लिए व्रत ग्रहण किया। ___ भगवान शान्तिनाथने अब राज्यकी बागडोर अपने हाथमें ली । और न्यायपूर्वक राज्य करने लगे । उनके यशोमति नामक एक पटरानी थी। उसकी कोखमें दृढरथका जीव सर्वार्थसिद्धि विमानसे च्यवकर आया। उसी रातको महादेवीने अपने स्वनमें मुंहमें चक्ररत्नको प्रवेश होते देखा ।
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