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१९ श्री मल्लिनाथ-चरित
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इच्छा हो, तभी संसारसे छूटनेका प्रयत्न करना"। फिर प्रभुने उनको विदा किया।
उसी समय लोकान्तिक देवोंने आकर विनती की:-“हे प्रभु! अब तीर्थ प्रवर्ताइए।" तब प्रभुने वर्षीदान दे, छट्ट तप कर मार्गशीर्ष सुदि ११ के दिन अश्विनी नक्षत्रमें सहसाम्र वनमें जा एक हजार पुरुषों और तीन सौ स्त्रियोंके साथ दीक्षा ग्रहण की । इन्द्रादि देवोंने दीक्षाकल्याणक मनाया ।
उसी दिन प्रभुको मनःपर्यय और केवलज्ञान प्राप्त हुए । दूसरे दिन विश्वसेन राजाके घरपर पारणा किया । इन्द्रादि देवाने ज्ञानकल्याणक मनाया ।
प्रभुके तीर्थमें कुबेर नामका यक्ष, और वैराट नामकी शासनदेवी थी । उनके परिवारमें-८ गणधर, ४० हजार साधु, ५५ हजार साध्वियाँ, ६६८ चौदह पूर्वधारी, २ हजार २ सौ अवधिज्ञानी, १७५० मनःपर्ययज्ञानी, २ हजार २ सौ केपली, २ हजार ९ सौ वैक्रियलब्धिवाले, एक हजार चार सौ वादी, १ लाख ८३ हजार श्रावक और ३ लाख ७० हजार श्राविकाएँ थीं।
मल्लिनाथ अपना निर्वाणकाल समीप जान सम्मेद शिखरपर आये । पाँच सौ साधुओं और पाँच सौ साध्विओंके साथ उन्होंने अनशन ग्रहण किया । एक मासके बाद फाल्गुन सुदि १२ के दिन चन्द्र मक्षत्रमें वे मोक्ष गये। इन्द्रादि देवोंने मोक्ष कल्याणक मनाया।
इनकी कुल आयु ५५ हजार वर्षकी थी, उसमेंसे १००
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