SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९ श्री मल्लिनाथ-चरित २१५ इच्छा हो, तभी संसारसे छूटनेका प्रयत्न करना"। फिर प्रभुने उनको विदा किया। उसी समय लोकान्तिक देवोंने आकर विनती की:-“हे प्रभु! अब तीर्थ प्रवर्ताइए।" तब प्रभुने वर्षीदान दे, छट्ट तप कर मार्गशीर्ष सुदि ११ के दिन अश्विनी नक्षत्रमें सहसाम्र वनमें जा एक हजार पुरुषों और तीन सौ स्त्रियोंके साथ दीक्षा ग्रहण की । इन्द्रादि देवोंने दीक्षाकल्याणक मनाया । उसी दिन प्रभुको मनःपर्यय और केवलज्ञान प्राप्त हुए । दूसरे दिन विश्वसेन राजाके घरपर पारणा किया । इन्द्रादि देवाने ज्ञानकल्याणक मनाया । प्रभुके तीर्थमें कुबेर नामका यक्ष, और वैराट नामकी शासनदेवी थी । उनके परिवारमें-८ गणधर, ४० हजार साधु, ५५ हजार साध्वियाँ, ६६८ चौदह पूर्वधारी, २ हजार २ सौ अवधिज्ञानी, १७५० मनःपर्ययज्ञानी, २ हजार २ सौ केपली, २ हजार ९ सौ वैक्रियलब्धिवाले, एक हजार चार सौ वादी, १ लाख ८३ हजार श्रावक और ३ लाख ७० हजार श्राविकाएँ थीं। मल्लिनाथ अपना निर्वाणकाल समीप जान सम्मेद शिखरपर आये । पाँच सौ साधुओं और पाँच सौ साध्विओंके साथ उन्होंने अनशन ग्रहण किया । एक मासके बाद फाल्गुन सुदि १२ के दिन चन्द्र मक्षत्रमें वे मोक्ष गये। इन्द्रादि देवोंने मोक्ष कल्याणक मनाया। इनकी कुल आयु ५५ हजार वर्षकी थी, उसमेंसे १०० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy