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________________ २१६ जैन-रत्न वर्ष कुमारावस्थामें और शेष दीक्षा पर्यायमें बिताई । इनका - शरीर २५ धनुष ऊँचा था। ___ अरनाथके निवाण जानेके बाद कोटि हजार वर्ष पीछे मल्लिनाथजी मोक्षमें गये। . २० श्री मुनिसुव्रत-चरित जंबूद्वीपके अपर विदेहमें भरत देश है । उसमें चंपा नामकी नगरी थी। उसमें सुरश्रेष्ठ नामक राजा १ प्रथम भव-राज्य करता था । उसने नंदन मुनिका उपदेश सुनकर उनसे दीक्षा ले ली । अर्हत-भक्ति आदि बीस स्थानककी आराधना करनेसे तीर्थकर गोत्र बाँधा । २ दूसरा भव–मरकर वह प्राणत देवलोकमें गया । भरत क्षेत्रके मगधदेश में राजग्रही नामकी नगरी है । उसमें हरिवंशका राजा सुमित्र राज्य करता था उसक ३ तीसरा भव-पद्मावती नामकी रानी थी । स्वर्गसे सुरश्रेष्ठका जीव च्यवकर श्रावण सुदि १५ के दिन श्रवण नक्षत्रमें पद्मावती देवीके गभमें आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक मनाया। गर्भ-कालके समाप्त होने पर जेठ वीद ९ के दिन श्रवण नक्षत्रमें सुमित्र राजाके यहाँ पुत्ररत्नका जन्म हुआ । इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणकका उत्सव धूमधामसे मनाया । इनके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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