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जैन-रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
सजा कुंभने छहों राजाओंको मल्लिकुमारीसे मिलनेका संदेशा भेजा। राजा लोग मिलने आये । दासियोंने छहों राजाओंको छहों छोटी कोठड़ियोंके अन्दर प्रतिमावाले कमरेके दजेके बाहर खड़ा कर दिया। किवाड़ सीखचेवाले थे । इसलिए उन्हें प्रतिमा स्पष्ट दिख रही थी। राजा लोम उस रूपको देखकर दंग रह गये । वे समझे यही मल्लिकुमारी है। ___ राजा कुछ बोलें इसके पहले ही मल्लिकुमारीने उस प्रविमाके सिरसे ढक्कन हटा दिया। ढक्कन हटते ही बदबू सब तरफ फैल गई। राजा अपनी नाक कपड़ेसे बंदकर लौटने लगे। तब मल्लिकुमारी बोली:-“हे राजाओ! इस मूर्तिमें प्रति दिन केवल एक-एक ग्रास डाला गया है। उसकी दुर्गधको भी आप लोग यदि सहन नहीं कर सकते हैं तो मेरे शरीरकी दुर्गंध को, जिसमें प्रति दिन न जाने कितने ग्रास डाले गये हैं और जो महादुर्गध वाला हो मया है, आप कैसे सहन कर सकेंगे ? ज्ञानी पुरुष इस शरीरमें मोह नहीं करते । और आप लोगोंने तो तीसरे भवमें मेरे साथ दीक्षा ली थी। आप उसे क्यों स्मरण नहीं करते हैं और क्यों नहीं संसारको मायासे छूटते हैं ? उन लोगोंने जब मल्लिकुमारीके ये वचन सुने तो उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो आया। उनने अपने पूर्व भव जाने और प्रभुको पहचाना । वे हाथ जोड़कर कहने लगे:- "हे भगवन् ! आपने हम लोगोंकी आँखें खोल दीं। हमें आज्ञा दीजिए हम क्या करें ?" प्रभु बोले,-" जब तुम्हारी
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