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________________ १९ श्री मल्लिनाथ-चरित २१३ छहों मित्रोंको अशोकवाटिकामें ज्ञान होनेवाला है, अशोक वाटिकाके अन्दर एक खण्डका महल तैयार कराया। उसमें एक मनोहर रत्नमयी सिंहासन बनवाया, और उसमें एक मनोज्ञ स्वर्ण-प्रतिमा रखवाई । वह पोली थी। उसके मस्तकमें छेद रखवाया, और उसपर स्वर्णकमलका ढक्कन लगवाया। फिर वह हमेशा ढक्कन उठाकर अपने आहारमेंसे एक-एक ग्रास उसमें डालने लगी। जिस मकानमें प्रतिमा रखवाई थी, वह छोटा था। उसके छः दरवाजे बनवाये । हरेक दरवाजेपर ताला डलवा दिया । उन दर्वाजोंके आगे एक-एक कोठड़ी और बनवाई । प्रतिमाके पीछे की तरफ भी एक दर्वाजा बनवाया, वह प्रतिमासे बिलकुल सटा हुआ था। दूत कुंभराजाके पास मल्लिकुमारीको माँगने पहुँचे। कुंभने अपमान कर उन्हें निकाल दिया । उन छहों राजाओंने सोचा, कुंभराजाने हमारा अपमान किया है । इसलिए उसको इसका दण्ड देना ही चाहिये । उन्होंने परस्पर सलाह कर बदला लेनेके लिये मिथिला नगरीपर चढ़ाई कर दी। ___कुंभ राजाने युद्धकी तैयारी की। मल्लिकुमारीने कहा:"पिताजी ! आप व्यर्थ ही नरहत्या न करिये, कराइए । राजाओंको मेरे पास मिलनेको भेज दीजिये । मैं सबको ठीक कर दूँगी। ___ अभिमानी राजाने सशंक नेत्रोंसे अपनी कन्याकी तरफ देखा । पुत्रीकी आँखों में वह पवित्र तेज था कि जिसे देखकर उसका संदेह मिट गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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