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________________ २१२ जैन-रत्न जंबद्वीपके दक्षिण भरतमें मिथिला नगरी थी । उसका राजा कुंभ था । उसकी स्त्रीका नाम प्रभावती ३ तीसरा भव-था स्वर्गसे महाबलका जीव च्यवकर फाल्गुन सुदि १४ के दिन अश्विनी नक्षत्रमें प्रभावतीके गर्भ में आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक मनाया। समयके पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष सुदि ११ के दिन अश्विनी नक्षत्रमें प्रभावती देवीके गर्भसे कुंभलक्षण युक्त, नील वर्णी पुत्रीका जन्म हुआ । जब पुत्री गर्भ में थी, तब माताको मोतियोंकी शय्यापर सोनेकी इच्छा हुई थी, इससे उनका माल्ल कुमारी नाम रखा गया । इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक मनाया । वे क्रमसे बढ़ती हुई युवा हुई। मल्लिकुमारीके पूर्वभवके मित्रों से अचलका जीव साकेत नगरीम प्रतिशुद्ध नामक राजा हुआ । धरणका जीव चंपानगरीमें चन्द्रछाया नामक राजपुत्र हुआ । पूरणका जीव श्रीवत्सी नगरीमें रुक्मी नामक राजा हुआ । वसुका जीव बनारसी नगरीमें शंख नामक राजा हुआ । वैश्रवणका जीव हस्तिनापुरमें अदीनशत्रु नामक राजा हुआ और अभिचन्द्रका जीव कंपिलापुर नगरमें जितशत्रु नामका राजा हुआ । इन छहों राजाओंने पूर्व भवके स्नेहसे मल्लिकुमारीके साथ विवाह करनेकी इच्छासे अपने २ दूत भेजे । मल्लिकुमारीने अवधिज्ञानसे यह जानकर कि मेरे पूर्व भवके १ मल्लि-मोतियोंका फूल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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