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जैन - रत्न
किया । रातके समय ईशानेन्द्र ने अपने अन्तःपुरमें बैठे हुए ' नमो भगवते तुभ्यं ' कहके नमस्कार किया । इन्द्राणियोंके पूछने पर कि आपने अभी किसको नमस्कार किया है ? इन्द्रने जवाब दिया :- " पुडरीकिणी नगरीके राजा मेघरथने अष्टम तप कर अभी कायोत्सर्ग धारण किया है । वह इतना दृढ मनवाला है कि, दुनियाका कोई भी प्राणी उसे अपने ध्यान से विचलित नहीं कर सकता है । "
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इन्द्राणियों को यह प्रशंसा असह्य हुई | वे बोलीं : -“ जाकर देखती हैं कि, वह कैसा दृढ मनवाला है । " इन्द्राणियोंने आकर और देवमाया फैलाकर मेघरथको ध्यान से चलित करनेकी, रातभर अनेक कोशिशें कीं, अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्ग किये; परन्तु राजा अपने ध्यानसे न डिगा । मूर्य उदित होनेवाला है यह देख इन्द्राणियोंने अपनी माया समेट ली और ध्यानस्थ राजाको नमस्कार कर उससे क्षमा माँगी, फिर वे चली गई ।
ध्यान समाप्तकर राजाने दीक्षा लेनेका दृढ संकल्प कर लिया । एक बार धनरथ जिन विहार करते हुए उधर से आये । मेघरथने अपने पुत्र मेघसेनको राज्य देकर दीक्षा ले ली । उनके भाई दृढरथने, उनके सात सौ पुत्रोंने और अन्य चार हजार राजाओं ने भी उनके साथ दीक्षा ली । मेघरथ मुनिने 1 बस स्थानकी आराधना कर तीर्थकर नामकर्मका बंध किया । अन्तमें, मेघरथ और दृढरथ मुनिने, अखंड चारित्र पाल, अंबर तिलक पर्वत पर जाकर अनशन धारण किया ।
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