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जैन-रत्न
जब मेघरथ और दृढरथ ब्याह करने गये थे तबकी बात है। पुंडरीकिणीसे सुमंदिरपुर जाते हुए रस्तेमे सुरेन्द्रदत्त राजाका राज्य आया। उसने मेघरथको कहलाया कि, तुम मेरी सीमामें होकर मत जाना । कुमार मेघरथने इस बातको अपना अपमान समझा और सुरेन्द्रदत्तपर आक्रमण कर दिया। घोर युद्ध हुआ
और सुरेन्द्रदत्तने हारकर आधीनता स्वीकार कर ली। वे उसको अपने साथ लेते गये। और वापिस लौटते समय सुरेन्द्रदत्तको उसकी राज्यगद्दी सौंपते आये । ___ एक बार राजा धनस्थ अपने अन्तःपुरमें आनंदविनोद कर रहा था । उस समय सुसीमा नामकी एक वेश्या आई। उसके पास एक मुर्गा भी था। वह बोली:-" महाराज ! मेरा यह मुर्गा अजित है। आजतक किसीके मुर्गेसे नहीं हारा । अगर किसीका मुर्गा मेरे मुर्गेको हरा दे तो मैं उसको एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ हूँ।"
राणी मनोरमा बोली:-"स्वामिन् ! मैं इससे बाजी बदनेकी बात तो नहीं करती परन्तु इसका घमंड तोड़ना चाहती हूँ | इसलिये अगर आज्ञा हो तो मैं अपना मुर्गा इसके मुर्गेसे लड़ाऊँ ।"
राजाने आज्ञा दी । मनोरमाने अपना मुर्गा मँगवाया। दोनों मुर्गे लड़ने लगे । बहुत देरतक किसीका मुर्गा नहीं हारा । यद्यपि दोनों चौंचोंकी और ठोकरोंकी चोटोंसे लोहू लुहान हो गये थे तथापि एक दूसरेपर बराबर प्रहार कर रहे थे। कोई पीछे हटना नहीं चाहता था। राजाने कहा:-" इनमेंसे कोई किसीसे नहीं हारेगा । इसलिए इन्हें छुड़ा दो।"
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