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१६ श्री शांतिनाथ-चरित
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इस पक्षीको छोड़िए और मुझे बचाइए । मैं ताजा मांसके सिवा किसी तरहसे भी जिंदा नहीं रह सकता हूँ।" __ मेघरथने कहा:-" हे बाज ! अगर ऐसा ही है तो इस कबूतरके बराबर मैं अपने शरीरका मांस तुझे देता हूँ। तू खा
और इस कबूतरको छोड़कर अपनी जगह जा।" ___ बाजने यह बात कबूल की। राजाने छुरी और तराजू मँगवाये । एक पलड़ेमें कबूतरको रक्खा और दूसरेम अपने शरीरका मांस काटकर रक्खा । राजाने अपने शरीरका बहुतसा मांस काटकर रख दिया तो भी वह कबूतरके बराबर न हुआ। तब राजा खुद उसके बराबर तुलनेको तैयार हुआ। चारों तरफ हाहाकार मच गया । कुटुंबी लोग जार जार रोने लगे । मंत्री लोग आँखों में आँसू भरकर समझाने लगे,-"महाराज ! लाखोंके पालनेवाले आप, एक तुच्छ कबूतरको बचानके लिए प्राण त्यागनेको तैयार हुए हैं, यह क्या उचित है ? यह करोड़ों मनुष्योंकी बस्ती आपके आधारपर है; आपका कुटुंब परिवार आपके आधारपर है उनकी रक्षा न कर क्या आप एक कबूतरको बचानेके लिए जान गँवायँगे ? महारानियाँ,-आपकी पत्नियाँ, आपके शरीर छोड़ते ही प्राण दे देंगी, उनकी मौत अपने सिरपर लेकर भी, एक पक्षीको बचानेके लिए मनुष्यनाशका पाप सिरपर लेकर भी, क्या आप इस कबूतरको बचायँगे ? और राजधर्मके अनुसार दुष्ट बाजको दंड न देकर, उसकी भूख बुझानेके लिए अपना शरीर देंगे ? प्रभो ! आप इस न्याय-असंगत कामसे हाथ उठाइए
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