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१६ श्री शांतिनाथ-चरित
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राज्य दिया, फिर स्वयंप्रभ मुनिके पास जाकर दीक्षा ग्रहण की और चिर काल तक चारित्र पाला । एक बार मनसे चारित्रकी विराधना हो गई, इससे वह मरकर भुवनपति निकायमें चमरेन्द्र हुआ। ___ अनंतवीर्यने जबसे शासनकी बाग डोर अपने हागमें ली, तबसे वह एक सच्चे नृपतिकी तरह राज्य करने लगा। उसका भ्राता अपराजित भी राज्य कार्यमें अनंतवीर्यका हाथ बँटाने लगा । एक समय कोई विद्याधर उनकी राजधानीमें आ निकला । उसके साथ उन दोनों भाइयोंकी मैत्री हो गई । इस कारणसे वह उनको म विद्या देकर चला गया ।
अनंतवीर्यके यहाँ बबरी और किराती नामकी दो दासियाँ थीं। वे संगीत, नृत्य एवं नाट्यकलामें बड़ी निपुण थीं। वे समयपर अनंतवीर्य और अपराजितको अपनी विविध कलाओं द्वारा बड़ा आनन्द दिया करती थीं।
एक समय अनंतवीर्य वासुदेव और अपराजित बलदेव राजसभामें उन रमणियोंकी नाट्यकलाका आनन्द लूट रहे थे। चारों ओर हर्ष ही हष था। उसी अवसरपर, दूसरोको लड़ा देनेमें ख्यात, नारदका राजसभामें आगमन हुआ। मगर दोनों भाई नाटक देखनेमें इतने निमग्न थे कि वे नारद मुनिका यथोचित सत्कार न कर सके । बस फिर क्या था ? नारद मुनि उखड़ पड़े और अपने मनमें यह सोचते हुए चले गये कि मैं इस अपमानका इन्हें अभी फल चखाता हूँ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com