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१६ श्री शांतिनाथ-चरित
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करती हो वह कैसा है ? मुझे पूरा हाल सुनाओ ।" उसने कहाः-"अनंतवीर्य शुमा नगरीका राजा है । उसका रूप कामदेवके जैसा है। शत्रुका वह काल है, याचकोंके लिए वह साक्षात लक्ष्मी है और पीडितोंके लिए वह निर्भय स्थान है । उसके मैं क्या बखान करूँ?" इस तरह अनंतवीर्यकी तारीफ सुनकर कनकश्री उसको देखनेके लिए लालायित हो उठी। उसके चहरेपर उदासी छा गई। यह देखकर अपराजित बोला:" भद्रे ! सोच मत करो । अगर चाहोगी तो शीघ्र ही अनन्तवीर्यके दर्शन होंगे।"
कनकधी बोली:-" मेरे ऐसे भाग कहाँ हैं कि मुझे अनन्तवीर्यके दर्शन हों । अगर तु मुझे उनके दर्शन करा देगी तो मैं जन्मभर तेरा अहसान माँनूगी । "
"अच्छा ठहरो ! मैं अभी अनंतबीयको लाती हूँ।" कह कर अपराजित बाहर गया और थोड़ी ही देरमें अनंतवीर्यको लेकर वापिस आया । कनकत्री उस अद्भुत रूपको देखकर मुग्ध हो गई । उसने अपना जीवन अनंतवीर्यको सौंप दिया। ___ अनंतवीर्य बोला:-"कनकधी ? अगर शुभा नगरीकी महाराणी बनना चाहती हो तो मेरे साथ चलो।" कनकश्रीने उत्तर दिया:-" मेरे बलवान पिता आपको जगतसे विदा कर देंगे।" ___ अपराजित हँसा और बोला:-"तुम्हारा पिना ही दुनियामें वीर नहीं है । अनंतवीर्यकी विशाल वीर भुजाओंकी तलवार तुम्हारा पिता न सह सकेगा । तुम बेफिक्र रहो और इच्छा हो
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