________________
१७६
जैन-रत्न
वायुवेगसे वे वैताढ्य गिरीपर गये और दमितारी नामक विद्याधरोंके राजाकी सभा पहुँचे । राजाने अचानक मुनिका आगमन देखकर सिंहासन छोड़ दिया। उनका स्वागत करने के लिए वह सामने आया और उसने उन्हें, नम्रतापूर्वक अभिवादन कर, उचित आसनपर बिठाया । मुनिने आशीर्वाद देकर कुशल प्रश्न पूछा । यथोचित उत्तर देकर दमितारिने कहा:-" मुनिवर्य ! आप स्वच्छन्द होकर सब जगह विचरते हैं और सब कुछ देखते और सुनते हैं । इस लिए कृपाकर कोई ऐसी आश्चर्य युक्त बात बतलाइये जो मेरे लिए नई हो ।" ___ नारद तो यही मौका ढूँढ रहे थे, बोले:-" राजन् ! सुनो, एक समय मैं घूमता घामता शुभा नगरीमें जा निकला । वहाँ अनंतवीर्यकी सभामें बर्बरी और किराती नामक दो दासियाँ देखीं। वे संगीत, नाट्य, एवं वाद्य कलामें बड़ी चतुर हैं । उनकी विद्या देखकर मैं तो दंग रह गया। स्वर्गकी अप्सराएँ तक उनके सामने तुच्छ हैं । हे राजा ! वे दासियाँ तेरे दरबारके योग्य हैं।"
इस तरहका विषबीज बोकर नारद मुनि आकाश मार्गसे अपने स्थानपर गये। उनके जानेके बाद दमितारिने अपने एक दूतको बुलाया और धीरेसे उसको कुछ हुक्म दिया । दूतने उसी समय शुभा नगरीको प्रस्थान किया और अनंतवीर्यकी राजसभामें जाकर कहा:-" राजन् ! आपकी सभामें बर्बरी और किराती नामकी जो दासियाँ हैं। उन्हें हमारे स्वामी दमितारिके भेंट करो, क्योंकि वे गायनवादनकलामें अद्भुत हैं। और जो कोई अनोखी वस्तु अधीनस्थ राजाके यहाँ हो वह स्वामीके घर ही पहुँचनी चाहिए।"
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com