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१६ श्री शांतिनाथ-चरित
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करा उसने भी अपनी पत्नीके साथ जल मरना स्थिर किया । धू धू करके चिता जलने लगी।
उसी समय दो विद्याधर वहाँ आये । उन्होंने पानी मंत्रकर चितापर डाला । चिता शांत हो गई और उसमेंसे प्रतारणी विद्या अट्टहास करती हुई भाग गई । श्रीविजयने आश्चर्यसे ऊपरकी तरफ देखा । उसने अपने सामने दो युवकोंको खड़े पाया । श्रीविजयने पूछा:-" तुम कौन हो ? यह चिता कैसे बुझ गई है ? मरी हुई सुतारा कैसे जीवित हुई है और वह हँसती हुई कैसे भाग गई है ?" ___ उनमें से एकने हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक जवाब दियाः
" मेरा नाम संभिन्नश्रोत है । यह मेरा पुत्र है । इसका नाम दीपशिख है। हम स्वामीसे आज्ञा लेकर तीर्थयात्राके लिए निकले थे। रास्तेमें हमने किसी स्त्रीके रुदनकी आवाज सुनी । हम रुदनकी तरफ गये। हमने देखा कि हमारे स्वामी अमिततेजकी बहिन सुताराको दुष्ट अशनिघोष जबर्दस्ती लिये जा रहा है और वे रस्तेमें विलाप करती जा रही हैं। हमने जाकर उसका रस्ता रोका और उससे लड़नेको तैयार हुए । स्वामिनीने कहा,-"पुत्रो! तुम तुरत ज्योतिर्वनमें जाओ और उनके प्राण बचाओ । मुझे मरी समझकर कहीं वे प्राण न दे दें । उनको इस दुष्टताके समाचार देना । वे आकर इस दुष्ट पापीके हाथसे मेरा उद्धार करेंगे।" हम तुरत इधर दौड़े आये।
और मंत्रबलसे हमने अनिको बुझा दिया । बनावटी सुतारा जो मंत्रबलसे बनी हुई थी-भाग गई ।"
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