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२ श्री अजितनाथ-चरित
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एक बार सरदीके दिनोंमें ब्राह्मण चौपालमें बैठे हुए अग्नि ताप रहे थे । शुद्धभट भी अपने पुत्रको गोदमें लेकर फिरता हुआ उधर चला गया । उसको देखकर सारे ब्राह्मण चिल्ला उठे,"-दूर हो ! दूर हो ! हमारे स्थानको अपवित्र न कर ।"
शुद्धभटको क्रोध हो आया और उसने यह कहते हुए अपने लड़केको आगमें फेंक दिया कि यदि जैनधर्म सच्चा है और सम्यकृत्व वास्तविक महिमामय है तो मेरा पुत्र अग्निमें न जलेगा। • सब चिहुँक उठे और खेद तथा आक्रोशके साथ कहने लगे:-" अफ्सोस ! इस दुष्ट ब्राह्मणने अपने बालकको जला दिया ।" ___ वहाँ कोई सम्यक्त्ववान देवी रहती थी। उसने बालकको बचा लिया। उस देवीने पहले मनुष्य भवमें संयमकी विराधना की थी, इससे मरकर वह व्यंतरी हुई । उसने एक केवलीसे पूछा था,-"मुझे बोधिलाभ कब होगा?" केवलीने उत्तर दिया था,-"तू सुलभबोधि होगी, तुझे सम्यक्त्वकी प्राप्तिके लिए भली प्रकारसे सम्यक्त्वकी आराधना करनी पड़ेगी।" तभी से देवी सम्यक्त्व प्राप्तिके प्रयत्नमें रहती थी। उस दिन सम्यक्त्वका प्रभाव दिखानेहीके लिए उसने बच्चेकी रक्षा की थी।
ब्राह्मण यह चमत्कार देखकर विस्मित हुए । उस दिनसे उन्होंने शुद्धभटका तिरस्कार करना छोड़ दिया।
शुद्धभटने घर जाकर सुलक्षणासे यह बात कही । सुलक्षणाने कहा:-"आपने ऐसा क्यों किया? यह तो अच्छा हुआ कि दैवयोगसे कोई व्यन्तर देव वहाँ था जिसने बालकको
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