________________
३ श्री संभवनाथ-चरित
१२३ mmmmmmmmm
सवेरे ही जितारी राजाने बड़ा भारी उत्सव किया। सारा नगर राजभवनकी तरह मंगल-गान और आनन्दोल्लाससे परिपूर्ण हो गया। प्रभु जब गर्भ में थे तब शंबा (फलि, चवले का धान्य) बहुत हुआ था इसलिए उनका नाम शंबक नाथ अथवा संभवनाय रक्खा गया।
प्रभुका बाल्यकाल समाप्त हुभा । युवा होनेपर ब्याह हुआ । पन्द्रह लाख पूर्व भोग भोगनेके बाद जितारी रोजाने दीक्षा ली और प्रभुका राज्याभिषेक किया। प्रभुने चवालीस लाख पूर्व और चार पूर्वांग* तक राज्यका उपभोग किया।
तीन ज्ञानके धारक प्रभु एक बार एकांतमें बैठे हुए थे । उसी समय उन्हें विचार आया,-"यह संसार विष-मिश्रित मिठाईके समान है। खानेमें स्वाद लगते हुए भी प्राणहारी है । ऊसर भूमिमें अनाज कभी पैदा नहीं होता, इसी प्रकार चौरासी लाख जीव-योनिकी दशा है । मनुष्यभव बड़ी कठिनतासे मिलता है। प्रबल पुण्यका उदय ही इस योनिका कारण होता है । मनुष्यभव पाकर भी जो इसको व्यर्थ खो देता है, आत्मसाधन नहीं करता है उसके समान संसारमें अभागा कोई नहीं है । यह तो अमृत पाकर उसे पैर धोनेमें खर्च कर देना है। मनुष्य होकर भोग विलासमें ही समय निकाल देना मानों रत्न पाकर कौओंको खिला देना है।"
भगवान जब इस प्रकार वैराग्य भावनामें मग्न थे उस समय १-एक पूर्वाग चौरासी लाख बरसका होता है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com