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जैन-रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
समान मनवाळे (एकसी कृपा करनेवाले ) तो आप ही हुए हैं। इसलिए हे चंद्रप्रभ भगवान ! आपको मेरा नमस्कार है। धातकीखण्ड द्वीपमें मंगलावती नामका देश है। उसकी प्रधान
नगरी रत्नसंचयी है। उसका राजा पद्म था। कोई १ प्रथमभव कारण पाकर उसको संसारसे वैराग्य उत्पन्न
___ हो गया। उसने युगंधर मुनिके पास मुनिव्रत धारण किया । चिरकाल तक शुद्ध चारित्रको पाला और बीस स्थानकी आराधना कर तीर्थकर कर्मका उपार्जन किया । आयु पूर्ण होनेपर पद्मनाभ वैजयन्त नामक विमानमें
देव हुआ । वहाँके सुख भोगकर उसने
२ दूसरा भव मरण किया।
पद्मनाभका जीव चन्द्रपुरीके राजा महासेनकी रानी लक्ष्मणाके
गर्भमें, स्वर्गसे चयकर चैत्र वदि ५ के दिन ३ तीसरा भव अनुराधा नक्षत्रमें आया। इन्द्रादि देवोंने गर्भ
कल्याणक मनाया पौष वदि ११ के दिन अनुराधा नक्षत्रमें लक्ष्मणा देवीने पुत्रको जन्म दिया । इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक मनाया। माताको गर्भकालमें चन्द्रपानकी इच्छा हुई थी इससे पुत्रका नाम चन्द्रप्रभ रखा गया।
शिशुकालको लांघकर प्रभु जब यौवनावस्थाको प्राप्त हुए । तब अनेक राजकन्याओंके साथ उनका पाणिग्रहण हुआ। उन्होंने ढाई लाख पूर्व युवराज पदमें बिताये। पीछे २४ पूर्वयुक्त साढ़े छः लाख पूर्वतक राज्यसुख भोगा। तदनन्तर लौकान्तिक देवोंने आकर दीक्षा लेनेकी प्रार्थना की। उनकी बात मानकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com