________________
mmmmmm
१० श्री शीतलनाथ-चरित
१४५ -mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm राज्य किया। पीछे लोकान्तिक देवोंने प्रभुसे दीक्षा लेनेकी प्रार्थना की। __ संवत्सरी दान देनेके बाद प्रभुने छट्ठ व्रतकर माघ वदि १२ के दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रमें सहसाम्र वनमें जा एक हजार राजाओंके साथ दीक्षा ली। इन्द्रादि देवोंने तपकल्याणक किया। दूसरे दिन राजा पुनर्वसुके घर उनने पारणा किया। वहाँसे विहार कर तीन मासके बाद प्रभु उसी उद्यानमें आये। पीपल वृक्षके नीचे उन्होंने कायोत्सर्ग धारण किया । शुक्ल ध्यानके दूसरे भेदपर चढ़ और घातिया कर्मोंको क्षय कर पौष वदि ४ के दिन पूर्वाषाढा नक्षत्रमें शीतलनाथजी केवली हुए। इन्द्रादि देवोंने ज्ञानकल्याणक मनाया और समोशरणकी रचना की । प्रभुने सिंहासनपर बैठकर भव्य जीवोंको दिव्य उपदेश दिया।
शीतलनाथजीके शासनमें इतना परिवार था,-ब्रह्म नामक यक्ष, अशोका शासन देवी, ८१ गणधर, १ लाख साधु, एक लाख छः साध्वियाँ, १३०० चौदह पूर्वधारी, १४ सौ ७ हजार २ सौ अवधिज्ञानी, साढ़े सात हजार मनःपर्यय ज्ञानी, ७ हजार केवली, ४ हजार वैक्रियलब्धिधारी, ५ हजार ८ सौ वादी, २ लाख ८९ हजार श्रावक, और ४ लाख ५८ हज़ार श्राविकाए।
अपना निर्वाण काल समीप जान प्रभु सम्मेदशिखरपर आये । वहाँ उन्होंने एक हजार मुनियोंके साथ अनशन व्रत धारण किया। एक मासके वाद वैशाख वाद २ पूर्वाषाढा नक्षत्र
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com