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१४ श्री अनन्तनाथ-चरित
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अनन्तनाथ रखा गया । शिशुकालको त्याग कर प्रभु युवा हुए। उस समय पिताने अनेक कन्याओं के साथ उनकी शादी की। साढ़े सात लाख वर्ष तक युवराज रहे । फिर पिताके आग्रहसे राजा बने । और १५ लाख वर्ष तक राज्य किया। ___एक दिन लोकान्तिक देवोंने आकर दीक्षा लेनेकी प्रेरणा की। समय जान, वर्षीदान दे, सहसाम्रवनमें जा, वैशाख वदि १४ के दिन रेवती नक्षत्रमें प्रभुने छह तप युक्त दीक्षा ली। इन्द्रादि देवोंने दीक्षाकल्याणक मनाया। दूसरे दिन राजा विजयके घर परमान्नसे ( खीरसे) पारणा किया। प्रभु विहार करते हुए तीन वर्षके बाद वापिस उसी वनमें पधारे । अशोक वृक्षके नीचे कायोत्सर्ग ध्यानमें रहे । घाति काँका नाश होनेसे वैशाख वदि १४ के दिन रेवती नक्षत्रमें भगवानको केवलज्ञान हुआ । इन्द्रादि देवोंने ज्ञानकल्याणक किया। __ प्रभुके शासनमें-पाताल नामक यक्ष, अंकुशा नामकी शासन देवी, ५० गणधर, ६६ हजार साधु, ६२ हजार साध्वियाँ, ९ सौ चौदह पूर्वधारी, ४ हजार ३ सौ अवधिज्ञानी, ४ हजार ५ सौ मनःपर्ययज्ञानी, ५ हजार केवली, ८ हजार वैक्रियक लब्धि वाले, ३ हजार वादी, २ लाख ६ हजार श्रावक, और ४ लाख १४ हजार श्राविकाएँ थे।
मोक्षकाल समीप जान प्रभु सम्मेद शिखरपरगये और सात हजार साधुओंके साथ अनशन व्रत धारण कर चैत्र सुदि ५ के दिन पुष्य नक्षत्रमें मोक्षको पधारे । इन्द्रादि देवोंने निर्वाणकल्याणक मनाया।
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