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जैन-रत्न
गई कि पतिदेव नंगे आये हैं और मुझे झूठ कहा है। पतिकी झुठाईसे सत्यभामाके हृदयमें अद्धश्रा उत्पन्न हुई।
अचलग्राममें धरणीजट दैवयोगसे निर्धन हो गया । उसने सुना था कि कपिल रत्नपुरमें धनी हो गया है इसलिए वह धनकी आशासे कपिलके पास आया । कपिलने अपनी पत्नीसे कहा:-" मेरे पिताके लिए मुझसे अलग ऊँचा आसन लगाना और उनकी अच्छी तरहसे सेवाभक्ति करना।" कपिलको भय था कि, कहीं मेरे पिता मुझसे परहेज कर मेरी असलियत जाहिर न कर दें।
सत्यभामाको इस आदेशसे संदेह हुआ और कपिल जब भोजन करके चला गया तब उसने धरणीजटको पूछा:"पूज्यवर ! आप सत्य बताइए कि आपका पुत्र शुद्ध कुलवाली कन्याके गर्भसे जन्मा है या नहीं ? इनके आचरणोंसे मुझे शंका होती है । अगर आप झूठ कहेंगे तो आपको ब्रह्महत्याका पाप लगेगा।" __धरणीजट धर्मभीरु था। वह ब्रह्महत्याके पापके सोगंदकी अवहेलना न कर सका । उसने सच्ची बात बता दी। साथ ही यह भी कह दिया कि मेरे जानेतक तू कपिलसे इस विषयकी चर्चा मत करना।
जब धरणीजट कपिलसे सहायतार्थ काफी धन लेकर अचल ग्राम चला गया तब सत्यभामा राजा श्रीषेणके पास गई और उसको कहाः-" मेरा पति दासीपुत्र है । अंजानमें मैं अब
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