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१४ श्री अनन्तनाथ-चरित
स्वयंभूरमणस्पर्द्धि-करुणारसवारिणा ।
अनंतजिदनंता वः प्रयच्छतु सुखश्रियम् ॥ भावार्थ-अपने करुणा-रसरूपी जलके द्वारा स्वयंभू रमण समुद्रसे स्पर्धा करनेवाले श्रीअनंतनाथ भगवान अनंत मोक्षसुखरूपी लक्ष्मी तुम्हें देवें । धातकी खण्डद्वीपके ऐरावत देशमें अरिष्ठा नामक नगरी थीं।
__उसमें पद्मरथ राजा राज्य करता था । किसी १ प्रथम भव कारण उसको संसारसे वैराग्य हुआ । रक्ष
नामक आचार्यके समीप उसने दीक्षा ली । बीस स्थानककी आराधनासे उसने तीर्थकर गोत्रका बंध किया।
अन्तसमयमें शरीर छोड़कर पद्मरथका जीव प्राणत नामक २ दूसरा भव देवलोकमें पुष्पोत्तर विमानमें देवता हुआ । जंबूद्वीपकी अयोध्या नगरीमें सिंहसेन राजा था। उसकी
सुपक्षा नामकी रानी थी । उस रानीके गर्भ में ३ तीसरा भव पद्मरथका जीव देवलोकसे च्यव कर श्रावण
वदि ७ के दिन रेवती नक्षत्रमें आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक मनाया । गर्भावस्था पूर्ण होनेपर रानीने वैशाख सुदि १३ के दिन पुष्य नक्षत्रमें बाज पक्षीके लक्षणयुक्त पुत्रको जन्म दिया । इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक किया। गर्भकालमें पिताने अनंत शत्रु जीते थे, इससे इनका नाम
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