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जैन-रत्न
romrammar
आराधनासे तीर्थकर गोत्र बाँधा । चिर कालतक मुनिव्रत पालन किया। आयु पूर्ण होनेपर पद्मोत्तरका जीव सहस्रार स्वर्गमें बड़ा
ऋद्धिवान देव हुआ । वहाँ पर नाना प्रकारके
२ दूसरा भव सुख भोगे।
स्वर्गसे पद्मोत्तरका जीव च्यवकर कंपिला नगरके राजा
कृतवर्माकी रानी श्यामाके गर्भ में वैशाख सुदि ३ तीसरा भव १२ के दिन भाद्रपदमें आया । इन्द्रादि देवोंने
गर्भकल्याणक मनाया । गर्भका समय पूरा होनेपर माघ सुदि३ के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रमें वराह (सूअर) के चिन्ह युक्त पुत्रको श्यामा देवीने जन्म दिया । इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक मनाया । गर्भ समयमें माताके परिणाम निर्मल रहे थे इससे पुत्रका नाम विमलनाथ रखा गया। युवा होनेपर पिताने विमल कुमारका विवाह अनेक कन्याओंके साथ कर दिया। भगवान १५ लाख वर्ष तक युवराज पदमें रहे । ३० लाख वर्ष तक राज्य किया । फिर लोकान्तिक देवोंने आकर प्रार्थना की:- "हे प्रभु! दीक्षा धारण कीजिये।" भगवानने संवत्सरी दान दे, एक हजार राजाओंके साथ छ? तप सहित सहसाम्र वनमें दीक्षा धारण की । इन्द्रादि देवोंने तपकल्याणक मनाया। तीसरे दिन राजा जयके घर पारणा किया । दो वर्ष तक अनेक देशोंमें विहारकर प्रभु फिर उसी उद्यानमें आये और जंबू वृक्षके नीचे कायोत्सर्ग पूर्वक रहे। क्षपक श्रेणी में आरूढ़ होकर उन्होंने घातिया कोका क्षय किया और पौर्षे
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