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९ श्री पुष्पदंत ( सुविधिनाथा ) चरित. १४१
mmmmmmmmmmmmmion वहाँके अनुपम सुखोंको भोग कर महापाका जीव वैजयंत
विमानसे च्यवकर काकंदी नगरीके राजा ३ तीसरा भव सुग्रीवकी रानी रामाके गर्भमें, फाल्गुन यदि ९
के दिन मूल नक्षत्रमें आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणकका उत्सव मनाया। क्रमशः गर्भका समय पूर्ण होनेपर महारानी रामाने मार्गशीर्ष वदि ५ के दिन मूल नक्षत्रमें मंगरंके चिन्ह सहित, पत्ररत्नको जन्म दिया । इन्द्रादि देवोंने जन्मोत्सव मनाया । गर्भ समयमें माता सब विधियोंमे कुशल हुई थी इसलिए उनका नाम सुविधिनाथ एवं गर्भ समयमें माताको पुष्पका दोहला उत्पन्न हुआ था इससे उनका नाम पुष्पदन्त रेखा गया।
युवा होने पर पिताके आग्रहसे भगवानने अनेक राजकन्याओंके साथ विवाह किये । वे ५० हजार पूर्व तक युवराज रहे । इसके बाद ८८ पूर्वाग सहित ५० हजार पूर्व तक उन्होंने राज्य किया। फिर एक समय लोकान्तिक देवोंने आकर विनती की:-. "हे प्रभु ! अब जगतके जीवोंके हितार्थ दक्षिा धारण कीजिये।" तब प्रभुने वर्षीदान करके मार्गशीर्ष वदि ६ के दिन मूल नक्षत्रमें एक हजार राजाओंके साथ सहसाम्रवनमें जाकर दीक्षा धारण की। इन्द्रादि देवोंने दीक्षाकल्याणक किया। श्वेतपुरके राजा पुष्पके घर दूसरे दिन प्रभुने पारणा किया।
वहाँसे विहार कर चार मास बाद भगवान उसी उद्यानमें आये । और मालुर वृक्षके नीचे कायोत्सर्गकर कार्तिक
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