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जैन - रत्न
व्याख्या की । उसीके अनुसार गणधरोंने द्वादशांगी वाणीकी रचना की ।
अभिनंदन प्रभु के तीर्थमें यक्षेश्वर नामका यक्ष और कालिका नामकी शासन देवी हुए ।
क्रमशः अभिनंदन नाथके संघमें, 2 गणधर तीन लाख साधु, छः लाख तीस हजार साध्वियाँ नौ हजार आठ सौ अवधिज्ञानी, एक हजार आठ सौ चौदह पूर्वधारी, ग्यारह हजार छः सौ पचास मनः पर्यवज्ञानी, चौदह हजार वाद लब्धिवाले, दो लाख अठासी हजार श्रावक और पाँच लाख सत्ताईस हजार श्राविकाएँ, इतना परिवार हुआ ।
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प्रभु केवलज्ञान अवस्थामें आठ पूर्वांग और अठारह वर्ष कम लाख पूर्व तक रहे। फिर निर्वाण समय नजदीक जान समेत शिखर पर्वतपर आये । वहाँ एक मासका अनशन व्रत लेकर वैशाख सुदि ८ के दिन पुष्य नक्षत्रमें मोक्ष गये । इन्द्रादि देवोंने मोक्षकल्याणक किया । उनके साथ एक हजार मुनि भी मोक्षमें गये ।
अभिनंदन स्वामीने, कौमारावस्थामें साढ़े बारह लाख पूर्व, राज्य में आठ पूर्वाग सहित साढ़े छत्तीस लाख पूर्व और दीक्षा में आठ पूर्वागमें एक लाख पूर्व कम इस तरह कुल पचास लाख पूर्व की उम्र भोगी और वे मोक्षमें गये । उनका शरीर ३५० धनुष्य उँचा था ।
संभवनाथ स्वामीके निर्वाणके बाद दस लाख करोड सागरोपम बीते तब अभिनंदन नाथका निर्वाण हुआ ।
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