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जैन-रत्न
सुलक्षणाने उत्तर दिया:-"सच्चे देवको देव मानना, सच्चे गुरुको गुरु मानना और सच्चे धर्मको धर्म मानना यही सम्यक्त्व है ।" ___ शुद्धभटने पूछा:-"अमुक सच्चा है, यह बात हम कैसे जान सकते हैं ?" __सुलक्षणाने उत्तर दिया:-" जो सर्वज्ञ हों, रागादि दोषोंको जीतनेवाले हों और यथास्थित अर्थको कहनेवाले हों; वे ही सच्चे देव होते हैं। जो महाव्रतोंके धारक हों, धैर्यवाले हों, परिसहजयी हों, भिक्षावृत्तिसे प्रासुक आहार ग्रहण करनेवाले हों, निरन्तर समभावोंमें रहनेवाले हों और धर्मोपदेशक हों वे ही सच्चे गुरु होते हैं। जो दुर्गतिमें पड़नेसे जीवोंको बचाता है वह धर्म है। यह संयमादि दश प्रकारका है।" स्त्रीने फिर कहा,-" शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्तिकता ये पाँच लक्षणसम्यक्त्वको पहचाननेके हैं।"
स्त्रीकी बातें शुद्धभटके हृदयमें जम गई। उसने कहा:-"प्रिये ! तुम भाग्यमती हो कि, तुम्हें चिंतामणि रत्नके समान सम्यक्त्व प्राप्त हुआ है।" ___ शुद्ध भावना भाते और कहते हुए शुद्धभटको भी सम्यक्त्वकी प्राप्ति हो गई। दोनों श्रावक-धर्मका पालन करने लगे। ___ अग्रहारके अन्यान्य ब्राह्मण इनका उपहास करने लगे और तिरस्कार पूर्वक कहने लगे कि, ये कुलांगार कुलक्रमागत धर्म को छोड़कर श्रावक हो गये हैं । मगर इन्होंने किसीकी परवाह न की। ये अपने धर्म पर दृढ़ रहे ।
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