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जैन-रत्न
बचा लिया। यदि न होता तो हमारी कितनी हानि होती ? हमारा बालक जाता और साथ ही मूर्ख लोग जैनधर्मकी भी अवहेलना करते । सम्यक्त्व तो सत्य-मार्ग दिखानेवाला एक सिद्धान्त है । यह कोई चमत्कार दिखानेकी चीज नहीं है । अतः हे आर्यपुत्र ! आगेसे आप ऐसा कार्य न करें ।" ।
फिर अपने पतिको धर्ममें दृढ बनानेके लिये सुलक्षणा उसको लेकर यहाँ आई । ब्राह्मणने मुझसे प्रश्न किया और मैंने उत्तर दिया कि, यह प्रभाव सम्यक्त्वहीका है।
शुद्धभटने सुलक्षणा सहित दीक्षा ली। अनुक्रमसे दोना केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षमें गये। __ अजितनाथ स्वामीको केवलज्ञान हुआ तबसे वे विहार करते थे और उपदेश देते थे। उनके सब मिलाकर पचानवे गणधर थे, एक लाख मुनि थे, तीन लाख तीस हजार साध्वियाँ थीं, तीन हजार सात सौ चौदह पूर्वधारी थे, एक हजार साढ़े चार सौ मनःपर्यवज्ञानी थे, नौ हजार चार सौ अवधिज्ञानी थे, बारह हजार चार सौ वादी थे, बीस हजार चार सौ वैक्रियक लब्धिवाले थे, दो लाख अठानवे हजार श्रावक थे, और पाँच लाख पैंतालीस हजार श्राविकाएँ थीं।
दीक्षा लेनेके बाद एक लाख पूर्वमें जब चौरासी लाख वर्ष बाकी रहे तब, भगवान अपना निर्वाण निकट समझकर सम्मेत शिखर पर गये । जब उनकी बहत्तर लाख वर्षकी आयु समाप्त हुई तब उन्होंने एक हजार साधुओंके साथ, पादोपगमन अनशन किया। उस समय एक साथ सभी इन्द्रोंके आसन काँपे ।
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