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जैन-रत्न
___ जब देशना समाप्त हुई तब ब्राह्मणने पूछा:-"भगवन् ! यह इस भाँति कैसे है ? भगवानने उत्तर दिया:-" यह सम्यक्त्वकी महिमा है । यही सारे अनिष्टोंको नष्ट करनेका और सारे अर्थकी सिद्धियों का एक प्रबल कारण है। ऐहिक ही नहीं पारमार्थिक महाफल मुक्ति और तीर्थकर पद भी इसीसे मिलता है।"
ब्राह्मण सुनकर हर्षित हुआ और प्रणाम करके बोला:-"यह ऐसा ही है । सर्वज्ञकी वाणी कभी अन्यथा नहीं होती।" ___ श्रोताओंके लिए यह प्रश्नोत्तर एक रहस्य था, इसलिए मुख्य गणधरने, यद्यपि इसका अभिप्राय समझ लिया था तथापि पर्षदाको समझानेके हेतुसे, प्रभुसे प्रश्न किया:-" भगवान ! ब्राह्मणने क्या प्रश्न किया और आपने क्या उत्तर दिया ? कृपा करके स्पष्टतया समझाइए।"
प्रभुने कहा:-" इस नगरके थोड़ी ही दूर पर एक शालिग्राम नामका अग्रहार*है । वहाँ दामोदर नामका एक ब्राह्मण बसता था । उसके एक पुत्र था उसका नाम शुद्धमट था । सुलक्षणा नामक कन्याके साथ उसका ब्याह हुआ था । दामोदरका देहान्त हो गया । शुद्धभटके पास जो धन सम्पत्ति थी वह दैवदुर्विपाकसे नष्ट हो गई। वह दाने दानेको मोहताज हो गया । बिचारेके पास खानेको अन्नका दाना और शरीर ढकनेको फटा पुराना कपड़ा तक न रहा।
आखिर एक दिन किसीको कुछ न कहकर वह घरसे चुपचाप निकल गया । अपनी प्रिय पत्नी तकको न बताया कि, _* दानमें मिली हुई जमीनपर जो गाँव बसाया जाता है उसे अग्रहार कहते हैं।
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