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जैन-रत्न
प्रभुको आते देखकर प्रजाजन विदेशसे आये हुए बन्धुकी तरह प्रभुको घेरकर खड़े हो गये । कोई प्रभुको अपने घर विश्राम लेनेकी, कोई अपने घर स्नानादिसे निपटकर भोजन करनेकी, और कोई अपने घरको चलकर पावन करनेकी प्रार्थना करने लगा । कोई कहने लगा,-" मेरी यह मुक्तामाल स्वीकारिये । "कोई कहने लगा,-" आपके शरीरके अनुकूल रेशमी वस्त्र में तैयार कराता हूँ। आप उन्हें धारण कीजिये । " कोई कहने लगा,-" मेरा यह घोड़ा सूर्यके घोड़ेको भी परास्त करनेवाला है, आप इसको ग्रहण कीजिए।" कोई बोला,-" आप क्या हम गरीबोंकी कुछ भी भेट न स्वीकारेंगे?" आदि । मगर प्रभुने तो किसीको भी कोई उत्तर नहीं दिया। प्रभु आहारके लिए घर २ जाते थे और कहीं शुद्ध आहार न मिलनेसे लौट आते थे। __ शहरमें प्रभुके आनेकी धूम मच गई । सोमप्रभ राजाके पुत्र श्रेयांस कुमारने भी प्रभुके आगमनके समाचार सुने । यह अपने प्रपितामहके आगमन समाचार सुनकर हर्षसे पागल बना हुआ नंगे पैर अकेला ही प्रभुके दर्शनार्थ दौड़ा । उसने जाकर प्रभुके चरणोंमें नमस्कार किया । फिर वह खड़ा होकर उस मूर्तिको देखने लगा। देखते ही देखते उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया । उसके द्वारा उसे मालूम हुआ कि, साधुओंको शुद्ध आहार कैसे देना चाहिए । उसी समय प्रजाजनोंमैसे कइयोंने गन्नेके रससे भरेहुए घड़े लाकर श्रेयांस कुमारके भेट किये । कुमारने उसे शुद्ध समझकर प्रभुसे
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