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श्रीआदिनाथ-चरित
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स्वीकार करनेकी प्रार्थना की। प्रभुने शुद्ध आहार समझ अंजलि जोड़ हस्तरूपी पात्र आगे किया । उस पात्रमें यद्यपि बहुतसा रस समा गया; परन्तु कुमारके हृदयरूपी पात्रमें हर्ष न समाया। प्रभुने उस रससे पारणा किया । सुर, नरोंने
और असुरोंने प्रभुके दर्शन रूपी अमृतसे पारणा किया । मनुष्योंने आनंदाश्रु बहाये । आकाशमें देवताओंने दुंदुभि-नाद किया और रत्नोंकी, पंचवर्णके पुष्पोंकी, गंधोदककी और दिव्य वस्त्रोंकी दृष्टि * की । वैशाख सुदी ३ के दिन श्रेयांस कुमारका दिया हुआ यह दान अक्षय हुआ। इससे वह दिन पर्व हुआ और अक्षय तृतीयाके नामसे ख्याति पाया । यह पर्व-त्योहार आज भी प्रसिद्ध है। संसारमें अन्यान्य व्यवहार भगवान श्रीऋषभदेवने चलाये, मगर दान देनेका व्यवहार श्रेयांसकुमारने प्रचलित किया।
दुंदुभिनादसे और रत्नादिकी दृष्टिसे नगरके नर-नारी श्रेयांसके महलकी ओर आने लगे । कच्छ और महाकच्छ आदि कुछ तापस भी, जो उस समय दैववशात् हस्तिनापुर आये थे, प्रभुके पारणेकी बात सुनकर वहाँ आ गये । सबने श्रेयांसकुमारको धन्यधन्य कहा, उसके पुण्यको सराहा और प्रभुको उपालंभ देते हुए कहा:-" हमारा, यद्यपि प्रभुने पहिले पुत्रवत् पालन किया था, तथापि हमसे कोई ___ *-तीर्थकरोंका जब प्रथम पारणा होता है तभी ये पंच दिव्य होते हैं। यानी दुंदुभि बजती है और देवता रत्न, पाँच प्रकारके पुष्प, सुगन्धित : जल और उज्ज्वल वनोंकी वृष्टि करते हैं।
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