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जैन-रत्न
विनीता नगरीके स्वामी आदि तीर्थकर श्रीऋषभदेव स्वामीके बाद
इक्ष्वाकु वंशमें असंख्य राजा हुए। उस समय ३ तीसरा भव जितशत्रु वहाँके राजाथे, विजयादेवी उनकी
रानी थी। विजयादेवीने हस्ती आदिक चौदह स्वप्न देखे।वे सगर्भा हुई।विमलवाहन राजाका जीव विजया विमानसे च्यवकर, रत्नकी खानिके समान विजयादेवीकी कूखमें आया। उस दिन वैशाखकी शुक्ला त्रयोदशी थी, और चन्द्रका योगरोहिणी नक्षत्रमें आया था। इनको गर्भमें ही तीन ज्ञान (मति, श्रुति और अवधि)थे।
उसी दिन रातको राजाके भाई सुमित्रकी स्त्री वैजयंतीको भी-जिसका दूसरा नाम यशोमती था-वे ही चौदह स्वप्न आए । उसकी कूखमें भावी चक्रवर्तीका जीव आया। ___ सवेरा होनेपर राजाको दोनोंके स्वप्नोंकी बात मालूम हुई । राजाने निमित्तकोंसे फल पूछा । उन्होंने नक्षत्रादिका विचार करके स्वप्नोंका फल बताया कि, विजयादेवीकी कूखसे तीर्थकर जन्म लेंगे और यशोमतीके गर्भसे चक्रवर्ती । ___ इन्द्रादि देवोंके आसन विकंपित हुए । उन्होंने आकर गर्भकल्याणकका उत्सव किया।
जब नौ महीने और साढ़े आठ दिन व्यतीत हुए तब माघ शुक्ला अष्टमीके दिन विजयादेवीने, सत्य और प्रिय वाणी जैसे पुष्पको जन्म देती है, वैसे ही पुत्ररत्नको प्रसव किया। मुहूत्त शुभ था। सारे ग्रह उच्चके थे । नक्षत्र रोहिणी था। पुत्रके पैरमें हाथीका चिन्ह था। प्रसवके समय देवी और पुत्र-दोनोंको
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