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जैन-रत्न wwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm...mmar~ रीको बायें हाथसे गणितका ज्ञान दिया। वस्तुओंका मान ( माप) उन्मान ( तोला, माशा आदि तोल) अवमान (गज़, फुट, इंच आदि माप ) और प्रतिमान (तोला, माशा आदि वजन) बताया । माणि आदि पिरोना भी सिखलाया। उनकी आज्ञासे वादी और प्रतिवादीका व्यवहार राजा, अध्यक्ष और कुलगुरुकी साक्षीसे होने लगा । हस्ति आदिकी पूजा; धनुर्वेद तथा वैद्यककी उपासना; संग्राम, अर्थशास्त्र, बंध, घात, वध और गोष्ठी आदिकी प्रवृत्ति भी उसी समयसे हुई । यह मेरी माता है, यह मेरा पिता है, यह मेरा भाई है, यह मेरी बहिन है, यह मेरी स्त्री है, यह मेरी कन्या है । यह मेरा धन है, यह मेरा मकान है आदि, मेरे-तेरे-की ममता भी उसी
(नोट)-प्रभुने स्त्रियोंकी ६४ कलाएँ भी सिखाई थीं। कल्पसूत्रमें इसका उल्लेख है। मगर किसको सिखाई थीं, इसका उल्लेख हमारे देखने में नहीं आया। उन ६४ कलाओंके नाम ये हैं,-नृत्य, आचित्य, चित्र, वाजित्र, मंत्र, तंत्र, धन, वृष्टि, कलाकृष्टि, संस्कृत वाणी, क्रिया कल्प, ज्ञान, विज्ञान, दंभ, जलस्तंभ, गीता, ताल, आकृतिगोपन, आरामरोपण, काव्य शक्ति, वक्रोक्ति, नर लक्षण, गजपरीक्षा, अश्वपरीक्षा, वास्तु शुद्धि, लघुवृद्धि, शकुनविचार. धर्माचार, अंजन योग, चूर्ण योग, गृहीधर्म, सुप्रसादन कर्म, सोना सिद्धि, वर्णिका वृद्धि, वाक पाटव, करलाधव ललित, चरण, तैल सुरभिकरण भ्रत्यापेचार, गेहाचार व्याकरण, परनिराकण, वीणानाद, वितंडावाद, अंकस्थिति. जनाचार, कुंभक्रम, सारिश्रम, रत्नमणिभेद, लिपिपरिच्छेद, वैद्य किया, कामाविष्करण, रसोई, केशबंध. शालिखंडन, मुख मंडन, कथाकथन कुसुमग्रंथन, वरवेश, सर्व भाषाविशेष, वाणिज्य, भोज्य, अभिधान परिज्ञान
यथास्थान आभूषण धारण, अत्याक्षारिका आरै प्रेहलिका। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com