________________ (23) देते हैं; तथापि वे उस उपदेश से जो शुम पुण्य होता है, उस को मोक्ष का कारण समझते हैं। इसी लिए कहा गया है कि के पुण्य की अभिलाषा से उपदेश देते हैं। और इसी लिए हम उक्त प्रकार के उपदेशकों के उपदेश को स्वार्थोपदेश मानते हैं। यह कहा जा चुका है कि वीतराग भगवान का जो उपदेश है वह परमार्थोपदेश है / इस मान्यता के साथ ही हमें ___ " पुरुषविश्वासे वचनविश्वासः"। जिस पुरुष पर हमें विश्वास होता है। उस पुरुष के वचनों पर भी विश्वास होता है / इस न्याय को सामने रखना होगा। और इसी लिए पहिले ऐसे उपदेशकों के चरित्रों का और लक्षणों का विचार कर लेना अप्रासंगिक नहीं होगा। तीर्थकरों का संक्षिप्त चरित्र / जो जीव भविष्य में तीर्थंकर होनेवाला होता है वह स्वमावतः ही सब स्थानों पर उच्च कोटि में रहता है। उदाहरणार्थवह जीव शायद पृथ्वीकाय में उत्पन्न हो जाय तो भी वह खारी मिट्टी में उत्पन्न होकर स्फटिक रत्न आदि उच्च कोटि के पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है। इसी प्रकार यदि वह जीव जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय के अंदर उत्पन्न होता है तो उन उन में भी जो उत्तम चीज समझी जाती है उसी में उत्पन्न होता है।