________________ (21) असत्पदार्थ रूपी उन्मत्त हाथी उपद्रवित नहीं कर सकते हैं। एकान्तवाद में जैसे एक ही पदार्थ में, नित्य, अनित्य; सत्, असत् ; अभिलाप्य, अनमिलाप्य, और सामान्य, विशेष; ये चार धर्म, सिद्ध नहीं होते हैं। इसी प्रकार उपक्रम, अनुगम, नय और निक्षेप भी सिद्ध नहीं होते हैं। कहा है कि एकान्तवादो न च कान्तवादो ऽप्यसम्भवो यत्र चतुष्टयस्य / उपक्रमो वाऽनुगमो नयश्च; निक्षेप एते प्रभवन्ति तद्वत् // 43 // [ जैनस्याद्वादमुक्तावली-प्रथमस्तबकः।] __ इस प्रकार प्रसंगोपात्त 'नय , 'निक्षेप / 'प्रमाण , आदि का विवेचन कर के अब हम देशना के विषय पर आयेंगे / देशना के भेद / देशना का अर्थ है उपदेश / उपदेश दुनिया में दो प्रकार का देखा जाता है / (1) स्वार्थोपदेश और (2) परमार्थोपदेश। (1) रागी-मोहमायाऽऽसक्त-व्यक्तियों के उपदेश को स्वार्थोपदेश कहते हैं। (2) वीतराग-मोहमाया रहित-व्यक्तियों के उपदेश को परमार्थ उपदेश कहते हैं।