________________ (20) फिरा के अपने ही बिल पर आता है, तो भी वह समझता है कि-मैं बहुत दूर निकल गया हूँ। इसी भाति जैनेतर मतानुयायी लोग भी स्याद्वाद की सीधी सड़क पर चलते हुए भी, अपने को एकान्त पक्ष का समझ, अनेकान्त पक्ष को बुरी दृष्टि से देखते हैं। इसका कारण यदि खोनेंगे तो मिथ्यादृष्टि के सिवा और कुछ नहीं मालूम होगा। वादिदेवसूरि के शब्दों में कहें तो प्रत्येक स्थान में स्याद्वादशार्दूल-स्याद्वादसिंह ही विनयी बनता है / यथाप्रत्यक्षद्वयदीप्तनेत्रयुगलस्तर्कस्फुरत्केसरः, शाब्दव्यात्तकरालवक्त्रकुहरः सद्धेतुगुञ्जारवः / प्रक्रीडन्नयकानने स्मृतिनखश्रेणीशिखाभीषणः, संज्ञावालधिबन्धुरो विजयते स्याद्वादपञ्चाननः // 5 // स्याद्वादरत्नाकर-प्रथमपरिच्छेदः ] मावार्थ-सांव्यवहारिक और पारमार्थिक इन दो प्रत्यक्ष प्रमाण रूप दीप्त-तेजस्वी नेत्रों वाला; स्फुरायमान तर्क प्रमाण रूपी केशर वाला; शाब्द-आगम-प्रमाण रूप फैलाये हुए मुख वाला; श्रेष्ठ हेतु रूप गर्जना वाला; संज्ञा रूप पूंछ वाला; और स्मृति रूप नखश्रेणी के अग्रभागसे भयंकर बना हुवा स्याद्वाद रूपी सिंह 'नय' रूपी वन के अंदर क्रीडा करता हुआ विजयी बनता है। जिसने पूर्वोक्त स्याद्वादपंचानन देख लिया है उस को