________________
३० ]
* प्राकृत व्याकरण *
शुधू संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप छहा होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-१७ से संयुक्त व्यञ्जन 'x' के स्थान पर 'छ' को प्राप्ति और १-१७ से अन्य हलन्त व्यञ्जन 'ध' के स्थान पर 'हा' आदेश होकर हां स्प सिद्ध हो जाता है। 1-१७॥
शरदादेरत् ॥ १-१८॥ । शरदादेरन्त्य व्यञ्जनस्य अत् भवति ।। शरद् । सरओ ॥ भिसक् । भिसो ॥
अर्थ-संस्कृत भाषा के 'शरव' भिसक' आदि शब्दों के अन्श्यस्य हलन्त व्यञ्जन के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति होती है जैसे-शरद::: सरओ और भिसक् = भिसओ इस्पादि।
शरद संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सरओ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' को प्राप्ति; १-१८ से अन्त्य हलन्त व्यसन 'द' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बयान में अकारान्त पुस्लिम में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में 'ओ' की प्राप्ति; 'ओ' के पूर्वस्व 'अ' को Ke होकर भोप होकर सरओ रूप सिद्ध हो जाता है।
भिषा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मिसओ होता है इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'ष' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; १-१८ से अस्य हलन्त व्यञ्जनक' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा निमक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिा में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर उपरोक्त 'सरओ' के समान ही 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भिसभी कम सिट हो पाता है । १-१८॥
दिक्-प्रावृषोः सः ॥ १-१६ ॥
।
एतयोरन्स्यव्यञ्जनस्य सो भवति ॥ दिसा । पाउसो ।।
अर्थ-संस्कृत शब्द 'टिक' और 'प्रावृट्' में स्थित अन्य हलन्त म्यम्जन के स्थान पर 'स' का आदेश होता है जैसे-रिक्-दिसा और प्राक्ट पाउसो।
दिक संस्कृत रप हैं इसका प्राकृत रुप दिसा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१९ से अस्य हलन्त ध्यान 'क' के स्थान पर प्राकृत में 'स' भादेश-प्राप्ति; और ३-३१ की वृत्ति से स्त्रीलिंग अर्थक 'मा' प्रत्यय की प्राप्ति होफर दिसा रूप सिद्ध हो जाता है।
प्रावृट ( = प्रायः) संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप पाउसो होता है। इसमें सूत्र-सख्या-२-७९ से 'र' का लोप; १-१७७ स 'क' का लोए; १-१३१ से लोप हुए 'के पश्चात शेष रही हुई 'ऋ' के स्थान पर '3' की प्राप्तिा. १-१ से अन्त्य हलन्त व्यन्जन 'इ' (अथवा 'ए के स्थान पर 'स' को प्राप्ति १-३१ से प्राप्त