Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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निसर्गसे उपजनेका विरोध है । दूसरे विकल्प अनुसार तत् शद्वसे सम्यग्ज्ञानका भी आकर्षण करने वाले आप लोग यदि यों कहें कि सम्पूर्ण पदार्थोंको परोक्षरूपसे विषय करनेवाला सम्पूर्ण श्रुतज्ञान तो निसर्गसे उत्पन्न हो जाता है पहिले विकल्पके अनुसार आप केवलज्ञानको न पकडकर पूर्ण द्वादशांग श्रुतज्ञानको पकडेंगे, सो यह कहना भी आपका सिद्ध नहीं होता है । क्योंकि दूसरे आप्त पुरुषों के उपदेश बिना उस पूर्ण श्रुतज्ञानकी उत्पत्ति भी सिद्ध नहीं होती है । आत्मा और कर्म के सिद्धान्त ग्रन्थोंका अध्ययन करचुकनेपर अथवा पांच समितियोंके, तीन गुप्तियोंके, प्रतिपादक शास्त्रोंका मनन करचुकनेपर ही पूर्ण श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है । यह दूसरी बात है कि किसीको आप्तके उपदिष्ट शास्त्रोंका अध्ययन करनेपर बहुत काल पीछे अथवा अनेक जन्मोंके पश्चात् पूर्ण श्रुतज्ञान हो और किसी अञ्जन चोर, शिवभूति आदिको कतिपय मुहूर्तोंमें ही पूर्ण श्रुतज्ञान हो जावे । किन्तु पूर्ण श्रुतज्ञानकी उत्पत्ति में आप्तोंके आम्नायसे प्राप्त हुये लिखित या मौखिक उपदेश साक्षात् या परम्परासे कारण अवश्य माने गये हैं । सौधर्म इन्द्र, सर्वार्थ सिद्धिके देव इन सबके उक्त कारण विद्यमान है ।
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स्त्रयंबुद्धश्रुतज्ञानमपरोपदेशमिति चेन्न, तस्य जन्मान्तरोपदेशपूर्वकत्वात् तज्जन्मापेक्षया स्वयं बुद्धत्वस्याविरोधात् ।
यदि यहां कोई यों कहे कि जो मुनि बोधित बुद्ध हैं, उनको श्रुतज्ञान दूसरे आप्तोंके उपदेशसे भले ही होवे, किन्तु जो मुनिमहाराज स्वयंबुद्ध हैं अर्थात् अपने आप ही अध्यवसाय करके जिन्होंने पूर्ण श्रुतज्ञानको पैदा करलिया है, उन मुनियोंका श्रुतज्ञान तो परोपदेशकी अपेक्षा नहीं करता है, अतः उसको निसर्गसे जन्य सम्यग्ज्ञान कह देना चाहिये, सो ऐसा कहना तो ठीक नहीं है। क्योंकि उन प्रत्येकबुद्ध ( स्त्रयंबुद्ध ) मुनियोंके भी इस जन्मसे पहिलेके दूसरे जन्मोंमें जाने हुए हुए आप्त महाराजके उपदेशको कारण मानकर ही इस जन्ममें पूर्ण श्रुतज्ञान हो सका है । इस जन्म की अपेक्षासे उनको स्वयंबुद्धपना होने में कोई विरोध नहीं है । भावार्थ — वर्तमान जन्ममें दूसरोंके उपदेश विना जिन्होंने श्रुतज्ञान प्राप्त कर लिया है वे, स्वयंबुद्ध हैं यानी प्रत्येकबुद्ध हैं और जिन्होंने विवक्षित जन्ममें दूसरोंके उपदेशको ग्रहणकर श्रुतज्ञान प्राप्त कर लिया है वे बोधित बुद्ध हैं । यदि दूसरे जन्मोंमें ग्रहण किये हुए उपदेशोंका भी लक्ष्य रखा जावेगा तो सर्व ही मुनिजन बोधितबुद्ध कहे जावेंगे । अतः स्वयंबुद्ध मुनिके उत्पन्न हुआ श्रुतज्ञान भी अधिगमसे जन्य है । निसर्गसे नहीं ।
देशविषयं मत्यवधिमन:पर्ययज्ञानं निसर्गादेरुत्पद्यत इति द्वितीयविकल्पोऽपि न श्रेयान् तस्याधिगमजत्वासम्भवात् द्विविधहेतुकत्वाघटनात् । किञ्चिन्निसर्गादपरमधिगमादुत्पद्यते इति ज्ञानसामान्यं द्विविधहेतुकं घटत एवेति चेत् न, दर्शनेपि तथा प्रसंगात् । न चैतद्युक्तं प्रतिव्यक्ति तस्य द्विविधहेतुकत्वप्रसिद्धेः । यथा ह्योपशमिकं दर्शनं निसर्गादधिगमाच्चोत्पद्यते तथा क्षायोपशमिकं क्षायिकं चेति सुप्रतीतम् ।