Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्यार्थचिन्तामणिः
यहां बौद्ध अपने पक्षका यों अवधारण करते हैं कि अवयवीके अर्थक्रिया करनेकी शक्ति सिद्ध नहीं है, परमाणुओंके ही अर्थक्रिया करनेकी सामर्थ्य सिद्ध है, वे परमाणु ही अपनी अपनी असाधारण अर्थक्रियाओंको करते हुए रूपपरमाणु, रसपरमाणु अथवा रूपस्कन्ध, वेदनास्कन्ध आदिपनेसे व्यवहारमें प्रचलित हो रहे हैं । अर्थात् प्रत्येक वस्तुभूत परमाणुकी अर्थक्रिया न्यारी न्यारी है । जिस समय अनेक परमाणुएं एकसी जलधारण, शीतको दूर करना, छतको लादे रहना, पानी बैंचना आदि स्वरूप साधारण अर्थक्रियाओंको करनेमें प्रवृत्ति करते हैं तब तो वे घट, पट, सौड, लेज, आदि रूपसे व्यवहृत किये जाते हैं, जैसे कि सेनाके प्रत्येक घोडा पदाति आदिका असाधारण कार्य न्यारा है, किन्तु जिस समय सभी प्रत्यासन्न होकर कार्य कर रहे हैं वह सब सेनाका एकसा साधारण कार्य मान लिया जाता है । तिस कारण घट, पट, आदिक अवयवियोंको वस्तुभूतपना सिद्ध नहीं है । जो कुछ भी अर्थक्रिया हो रही है सब परमाणुओंकी है वह अवयवी तो केवल व्यवहारसे सत् मान लिया जाता है । वस्तुतः नहीं । अब आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार बौद्धोंको नहीं कहना चाहिये। क्योंकि जलको लाना, जलको धारण किये रहना, छतको लादे रहना आदि अर्थक्रियाओंके करनेमें सूक्ष्मपरमाणुओंकी सामर्थ्य नहीं सिद्ध होती है। उन क्रियाओंको करनेमें तो घट, पट, आदि अवयविओंकी ही सामर्थ्य है । अतः घट, पट, आदिक अवयवी वास्तविक अर्थ सिद्ध हो जाते हैं।
परमाणवो हि तत्र प्रवर्तमानाः कश्चिदतिशयमपेक्षन्ते न वा ? न तावदुत्तरः पक्षः सर्वदा सर्वेषां तत्र प्रवृत्तिप्रसंगात् । स्वकारणकृतमतिशयमपेक्षन्त एवेति चेत्, कः पुनरतिशयः ? समानदेशतयोत्पाद इति चेत्, का पुनस्तेषां समानदेशता ? भिन्नदेशानामेवोपगतत्वात् । जलाहरणाद्यर्थक्रियायोग्यदेशता तेषां समानदेशता नान्या, यादृशि हि देशे स्थितः परमाणुरेकस्तत्रोपयुज्यते तादृशि परेऽपि परमाणवः स्थितास्तत्रैवोपयुज्यमानाः समानदेशाः कथ्यन्ते न पुनरेकत्र देशे वर्तमाना विरोधात् । सर्वेषामकपरमाणुमात्रत्वप्रसंगात् सर्वात्मना परस्परानुप्रवेशादन्यथैकदेशत्वायोगादिति चेत् । का पुनरियमेका जलाहरणाद्यर्थक्रिया ? यस्यामुपयुज्यमाना भिन्नदेशवृत्तयोऽप्यणवः समानदेशाः स्युः। पतिपरमाणुभिद्यमाना हि सानेकैव युक्ता भवतामन्यथानेकघटादिपरमाणुसाध्यापि सेका स्यादविशेषात् ।
- हम बौद्धोंसे पूछते हैं कि उन अर्थक्रियाओंको करनेमें प्रवृत्त हो रही परमाणुएं क्या अवश्य किसी अतिशयकी अपेक्षा रखती हैं अथवा नहीं ? बताओ ! प्रथम परली ओरका दूसरा पक्ष ग्रहण करना तो ठीक नहीं है, क्योंकि विना किसी चमत्कारके उत्पन्न हुए ही यदि परमाणुएं जलधारण आदि कर्मोको कर लेवेंगी तो सदा ही सम्पूर्ण परमाणुओंको उन कार्यों में प्रवृत्ति करनेका प्रसंग होगा यानी बारेत भी जलको भरे रहेगा, सडी हुयी टूटी हुई सोट या तृण भी छतकें बोझको सम्हाल