Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
जिस सरोवरके तीरमें बकका जन्म हुआ है । उसीके साथ उसका कार्यकारण भाव है । अन्यके साथ नहीं। फिर यदि कोई बौद्ध आधारपर यों आक्षेप करें कि लम्बी, चौडी, भूमि कोई एक अवयवी द्रव्य नहीं है । आकाशके प्रत्येक प्रदेशमें भूमिका भेद है, यानी न्यारी न्यारी है। अतः परमाणु बराबर एकप्रदेशमें तो बकपंक्ति और सलिल दोनोंकी अवस्थिति नहीं हो सकती है। इस कारण आप जैनोंकी मानी हुई वह एकदेशमें रहनेवालोंकी क्षेत्र-प्रत्यासत्ति सिद्ध न हो सकी। आचार्य कहते हैं कि यह तो न कहना। क्योंकि भूमि, घट, पर्वत, शरीर, आदि अनेकक्षेत्रव्यापी अवयवियोंकी सिद्धि की जा चुकी है । वे क्षिति, गृह, पर्वत, आदि अवयवी उन बगुला, जल, आदिकके आधार होते हुए साधे जा चुके हैं। यदि यहां कोई यों कहे कि अनेक अवयवोंमें एक ही समय व्यापनेवाले एक अवयवी द्रव्यका असम्भव है सो नहीं कहना । क्योंक अनेक थम्भोंपर रखे हुए वांसके समान अनेक तन्तुओंमें एक पटका रहना प्रतीतियोंसे सिद्ध है । जैसे कि आप सौत्रान्तिकोंके यहां वेद्य आकार, वेदक आकार, और सम्वित्ति आकार इनमें व्यापक रूपसे रहनेवाला एकज्ञान माना गया है, इस प्रकार क्षेत्रप्रत्यासत्तिको सिद्धकर अब कालिक सम्बन्धको बौद्धोंके सम्मुख सिद्ध करते हैं।
___कालपत्यासत्तिर्यथा सहचरयोः सम्यग्दर्शनज्ञानसामान्ययोः शरीरे जीवस्पर्शविशेषयोर्वा पूर्वोत्तरयोर्भरणिकृत्तिकयोः कृत्तिकारोहिण्योर्वा तयोः प्रत्यासत्यन्तरस्याव्यवस्थानात् ।
कतिपय पदार्थोका कालिक सम्बन्ध इस प्रकार है कि एक साथ रहनेवाले सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान सामान्यका है । आत्मामें जिसी समय सम्यग्दर्शन है उसी समय सम्यग्ज्ञान है, सामान्य रूपसे चाहे कोई भी उपशम, क्षयोपशम, या क्षायिक सम्यक्त्व, होय उस समय सामान्यरूपसे चाहे कोई न कोई मतिज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान मनःपर्यय या केवलज्ञान अवश्य होगा विशेष सम्यग्दर्शनका विशेष ज्ञानके साथ इय कालिक सम्बन्ध नियत नहीं करते हैं। अथवा शरीरमें जीवका और विशेष स्पर्शका कालिक संबन्ध है। रोग अवस्थामें या जीवित और मृत अवस्थाकी परीक्षा करते समय शरीरमें जीवका और उष्ण आदि विशेष स्पर्शका कुछ काल आगे पीछे तक संबन्ध होना माना जाता है तथा पहिले मुहूर्त और उत्तर मुहूर्तमें उदय होनेवाले भरणी नक्षत्र और कृत्तिका नक्षत्रका अथवा कृत्तिका और रोहिणीका कालकी अपेक्षासे सम्बन्ध है। पूर्वमें कहे हुए तिन सम्यक्त्व, ज्ञान, आदिकका अन्य संबन्ध होनेकी व्यवस्था नहीं है । यह काल प्रत्यासत्ति हुयी। ____ भावप्रत्यासत्चिर्यथा गोगवपयोः केवलिसिद्धयोतियोरेकतरस्य हि यादृग्भावः संस्थानादिरनंतज्ञानादिर्वा तादृक्तदन्यतरस्य सुप्रतीत इति न प्रत्यासत्यंतरं कयोश्चिदनकमत्यासचिसंबन्धे वा न किंचिदनिष्ट प्रतिनियतोदभूतेः सर्वपदार्थानां द्रव्यादिप्रत्यासत्तिचतुष्टयव्यति