Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थकोकवार्तिक .
करनेका हेतु नहीं हो सकता है। क्योंकि यों तो बुद्ध और अन्य संसारी आत्माओंके भी एक सन्तान पना बनजानेका प्रसंग होगा, इसको हम पूर्वप्रकरणमें समर्थन करचुके हैं । भावार्थ-उत्तरवर्ती पर्यायका पूर्वसमयवर्ती पर्याय कारण है, ऐसा निर्दोष कार्यकारणभाव जिन सन्तानियोंमें घट जाय उन पदार्थोका सन्तान यदि माना जायगा, तब तो सर्वज्ञबुद्धके ज्ञानके कारण संसारी जीवोंके ज्ञान भी हैं। क्योंकि बौद्धोंका मत है कि ज्ञान अपने कारणोंको ही विषय करता है। बुद्धका ज्ञान संसारी जीवोंके ज्ञानको जानता है, ऐसी दशामें स्वकीय पूर्वापर भावी ज्ञानोंके समान संसारी जीवोंके ज्ञान . और बुद्धके ज्ञानकी भी एक सन्तान बन जानी चाहिये जो कि आपको इष्ट नहीं है । सर्वथा वादिओंके यहां उपादान कारण या निमित्तकारण ( अवयव ) का विवेक भी तो क्षाणीक पक्षों नहीं किया जासकता है। अतः व्यभिचारदोषसे रहित कार्यकारण भाव भी एकसन्तानका नियामक नहीं सम्भवता है ।
नाप्येकसामयधीनत्वं समुदायैकत्वनियमनिबंधनं धूमधनविकारादिरूपादीनां नानासमुदायानामेकसमुदायत्वानुषंगात् प्रतीतमातुलुंगरूपादिवत् ।।
और एकसामग्रीका आधीनपना भी समुदायके एकपनकी नियत व्यवस्थाका कारण नहीं हो सकता है। यों तो अनेक समुदायोंमें वर्तनेवाले धूमके रूप आदिक और गीले विकृत ईंधन आदिके रूप आदिकोंका भी एक समुदायपन होनेका प्रसंग होगा, जैसे कि प्रमाणसे जान लिये गये विजौरा नीबूके रूप, रस, आदिका समुदाय बन जाता है। अर्थात्-आग सुलग जानेपर गीले ईंधनके रूप और धुंवेके रूप आदिकी सामग्री एक है, किन्तु उनका समुदाय न्यारा न्यारा माना जाता है । ऐसे ही क्षेत्र भूमि, जल, वायु, आतप, आदि एक सामग्रीके होते हुये भी अनेक बीज, या अंकुरोंके समुदाय न्यारे न्यारे माने जाते हैं। अत: एक सामग्रीकी अधीनता एक समुदायका कारण नहीं हो सकती है।
एतेन समानकालत्वं तन्निमित्तमिति प्रत्युक्तं । एकद्रव्याधिकरणत्वं तु सहभुवामेकसमुदायत्वव्यवस्थाहेतुरिति सत्येवान्विते द्रव्ये। तिलादिरूपादिसमुदायकत्वनियमः साधर्म्य न पुनर्नानाद्रव्याणां । समानहेतुकत्वादिति वार्तामात्रं, विसदृशहेतूनामपि बहुलं साधर्म्यदर्शनात् रजतशुक्तिकादिवत् । समानपरिणामसत्त्वात् साधर्थे भावप्रत्यासत्तिविशेषादेव साधये । न च समानपरिणामो नाना परिणामिद्रव्याभावे सम्भवतीति न तद्वादिनामेकद्रव्यापहवः श्रेयान् । __समानकालपना तो एकसन्तानपन या एक समुदायपनका व्यवस्थापक नियम हो जायगा । यह भी इस पूर्वोक्त कथनसे खण्डित कर दिया गया समझ लेना चाहिये । क्योंकि एक ही समयमें गेंहू, जौ, चने आदि उत्पन्न हो रहे हैं तथा देवदत्त, यज्ञदत्त, हाथी, घोडा आदि परिणमन कर रहे हैं। फिर भी इन विजातियोंका सन्तान या समुदाय इष्ट नहीं किया गया है ।